‘‘तुम कौन हो?’’ – इस प्रश्न के विभिन्न उत्तर सुनने को मिलते हैं जैसे – ‘मैं हिन्दू हूँ’, ‘मैं ईसाई हूँ’, ‘मैं मुसलमान हूँ’, ‘मैं इंजीनियर हूँ’, ‘मैं डॉक्टर हूँ’…। इन सबमें जो सामान्य है वो है ‘मैं’ जिसका अपना कोई नाम, रूप नहीं है। यह वही परम तत्त्व है जिसे आत्मा, ब्रह्म अथवा परमात्मा […]
Category / उपदेश
तुमने उस लड़की की कथा सुनी है जिसने ड्रॅाईंग प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया? उसको पुरस्कार में एक फानूस प्राप्त हुआ जिस पर बड़ी खूबसूरत नक्काशी की गई थी। उसने इसे अपने घर की बैठक में लगा दिया। उस फानूस के सौन्दर्य को निहारते-निहारते, उसका ध्यान पहली बार दीवार के उतरते रंग-रोगन की ओर […]
एक बार जगत् के सब रंग इकठ्ठा हुए। प्रत्येक ने दावा किया, “मैं सबसे अधिक महत्वपूर्ण और सबका प्रिय रंग हूँ।” आखिर इस वार्तालाप का समापन विवाद में हुआ। हरे रंग ने घोषणा की, “निश्चित रूप से, मैं सबसे महत्वपूर्ण रंग हूँ। मैं जीवन का प्रतीक हूँ। वृक्ष, लताएँ – समग्र प्रकृति मेरे रंग की […]
एक बार एक संपन्न व्यापारी था जिसकी एक दुकान थी। उसे प्रायः व्यापार के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता था, अतः उसने एक मैनेजर रख लिया जिसे उसने दुकान की रोज़मर्रा की सब ज़िम्मेदारी सौंप दी – जैसे रोज़ के कारोबार का हिसाब-किताब रखना आदि। उसने उसे यह आदेश दिया कि प्रतिदिन के लाभ का […]
कल्पना करो कि हम जन-समूह में हैं और हमें एक पत्थर आ कर लगता है और हमें चोट लग जाती है। ऐसे में होना यह चाहिए कि हम पत्थर मारने वाले को पकड़ने की बजाय पहले अपने घाव पर ध्यान दें, उसकी मरहम-पट्टी करें। किन्तु यदि हम पत्थर मारनेवाले के पीछे दौड़ेंगे तो अपने घाव […]

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