एक बार जगत् के सब रंग इकठ्ठा हुए। प्रत्येक ने दावा किया, “मैं सबसे अधिक महत्वपूर्ण और सबका प्रिय रंग हूँ।” आखिर इस वार्तालाप का समापन विवाद में हुआ।
हरे रंग ने घोषणा की, “निश्चित रूप से, मैं सबसे महत्वपूर्ण रंग हूँ। मैं जीवन का प्रतीक हूँ। वृक्ष, लताएँ – समग्र प्रकृति मेरे रंग की है। इससे अधिक क्या कहूं?”
इतने में नीला रंग बीच में बोल पड़ा, “बकवास बन्द करो! तुम तो केवल धरती की ही बात कर रहे हो। तुम आकाश तथा सागर की ओर नहीं देखते क्या? उनका रंग नीला है। और पानी तो जीवन का आधार है। अनन्तता एवं प्रेम के रंग का, मेरा अभिवादन करो!”
यह सुनते ही, लाल रंग चिल्ला उठा, “बस, बहुत हो गया! सब चुप रहो! मैं तुम सबका राजा हूँ – मैं रक्त हूँ। मैं वीरता और साहस का रंग हूँ। मेरे बिना जीवन सम्भव नहीं है।”
इस हल्ले-गुल्ले के रंग धीरे से बोला, “तुम सबने अपनी-अपनी बात कह दी। मुझे एक ही बात कहनी है – मत भूलो कि मैं सब रंगों का अधिष्ठान हूँ।”
और फिर अनेकों रंग आगे बढ़-चढ़ कर अपनी महिमा तथा श्रेष्ठता का बखान करने आये। और धीरे-धीरे जो एक गोष्ठी-मात्र से आरम्भ हुआ था, उसने वाकयुद्ध का रूप ले लिया। रंगों में एक-दूसरे का सर्वनाश तक करने की ठन गई। सहसा आकाश में काले बादल छा गए, गर्जना होने लगी, बिजली चमकने लगी और फिर मूसलाधार वर्षा होने लगी। जल-स्तर तीव्रतापूर्वक बढ़ने लगा। वृक्ष समूल उखड़ गए और सारी प्रकृति अस्त-व्यस्त हो गई। भय से कांपते हुए सब रंग असहाय से हो कर चिल्ला उठे, “बचाओ!”
उसी समय उन्हें एक भविष्यवाणी सुनाई दी, “हे रंगो! अब तुम्हारा झूठा अहंकार, अभिमान कहाँ गया? तुम जो लोग मूर्खतावश श्रेष्ठता के लिए लड़ रहे थे, अब अपने जीवन की रक्षा कर पाने में असमर्थ, भय से कम्पायमान हो रहे हो। जिस-जिस वस्तु का तुम अपनी होने का दावा करते हो, वो क्षण-भर में नष्ट हो जाने वाली है। एक बात जान लो कि यद्यपि तुम सब अलग-अलग हो किन्तु अतुल्य हो। परमात्मा ने तुम सबको भिन्न-भिन्न उद्देश्य से बनाया है। स्वयं की रक्षा हेतु, तुम सबको मिलजुल कर रहना चाहिए। इकट्ठे रह कर तो तुम आकाश तक ऊंचे उड़ सकते हो, साथ-साथ खड़े रह कर सतरंगी इंद्रधनुष बन सकते हो, शान्ति व सौन्दर्य तथा कल की आशा के प्रतीक!”
बच्चो, जब कभी तुम खूबसूरत इंद्रधनुष को देखो तो तुम इस कथा को याद करना। यह तुम्हें एक-दूसरे को स्वीकार कर, मिल-जुल कर काम करने के लिए प्रेरित करे! धर्म, परमात्मा की उपासना के लिए पुष्प हैं, उन्हें ऊपरलिखित कथा के पात्रों की भाँति झगड़ालू नहीं होना चाहिए। धर्म के नाम पर हमें शत्रुता नहीं करनी चाहिए। यदि धर्म तथा धर्म-गुरु एक-साथ आ खड़े हों तो विश्व के सौन्दर्य को चार-चाँद लग जायेंगे। शान्ति की सुगंध सारे जगत् में फ़ैल जाएगी। हमें एक सामान्य मंच की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ हम सब एक हो कर आगे आयें। स्मरण रहे कि प्रकृति में प्रत्येक वस्तु का अपना महत्व है और उसका अस्तित्व एक समय-विशेष पर, किसी उद्देश्य-विशेष के लिए है।