प्रश्न – अम्मा की मुस्कान में कुछ विशेष बात है। इसका क्या कारण है?

अम्मा – अम्मा जान बूझ कर, प्रयत्न पूर्वक नहीं मुस्कुराती। यह स्वाभाविक रूप से, सहज रूप से होता है। जब तुम अपना मूल स्वरुप, अपनी आत्मा को जान लेते हो, तब केवल आनंद का अनुभव रहता है। और एक मुस्कान, उस आनंद की सहज अभिव्यक्ति ही तो है! क्या पूर्णिमा की चाँदनी को, स्वयं के बारे में कोई खुलासा देना पडता है?
प्रश्न – जो भी आपसे मिलते हैं, वे आप के प्रेम की प्रशंसा करते नहीं थकत। ऐसा क्यों ?
अम्मा – अम्मा दिखावे के लिये प्रेम प्रदर्शित नहीं करती। प्रेम स्वतः घटित होता है, सहज रूप से होता है। अम्मा किसी को भी नापसन्द नहीं कर सकती। अम्मा को एक ही भाषा आती है और वह है प्रेम की भाषा। और यह भाषा हर कोई समझता है। निश्छल प्रेम की कमी ही, आज की दुनिया की सबसे बडी गरीबी है। सभी लोग प्यार के बारे में बातें करते हैं और कहते है कि वे एक दूसरे को प्रेम करते हैं। पर उसे सच्चा प्रेम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह स्वार्थ से जुडा हुआ है। वह सस्ते गहने के समान है, जिस पर सोने का पानी चढाया हुआ है। पहनने में वह सुंदर लग सकता है परंतु गुणवत्ता में कमजोर है और बहुत समय टिकेगा नहीं।
एक छोटी बच्ची की कहानी है, जो बीमार होकर चिकित्सालय में भर्ती थी। उसके ठीक होने पर जब घर जाने का समय आया, तो वह अपने पिता से बोली, “पिताजी, यहाँ के लोग कितने अच्छे हैं। क्या आप भी मुझे उतना ही प्रेम करते हो, जितना ये लोग करते हैं? इन लोगों ने मेरी देखभाल की, ये मुझे कितना प्रेम करते थे! वे सदा पूछते थे कि मैं कैसी हूँ? मुझे क्या चाहिये? वे मेरा बिस्तर ठीक करते, समय पर खाना देते, और कभी नहीं डाँटते। आप और माँ तो मुझे हमेशा डाँटते ही रहते हो।” उसी समय अस्पताल के एक कर्मचारी ने एक कागज पिताजी को दिया। लडकी ने पूछा, “यह क्या है?” पिता ने कहा, “बेटी अभी तुम बता रही थी ना कि ये लोग तुम्हें कितना प्रेम करते हैं, यह बिल उसी प्रेम का मूल्य है।”
मेरे बच्चों, यह प्रसंग बतलाता है कि संसार में हमें किस तरह का प्यार मिलता है। जो भी प्यार हम देखते हैं उसके पीछे कहीं न कहीं, स्वार्थ की भावना जुडी रहती है। बाजार की मोल भाव करने की मानसिकता, हमारे व्यक्तिगत संबन्धों में भी प्रवेश कर गई है। किसी भी व्यक्ति से मिलने पर, जो पहला विचार लोगों के दिल में आता है वह यह है कि इस व्यक्ति से क्या लाभ उठाया जा सकता है। अगर कोई लाभ की आशा नहीं है तो वे उससे संबंध नहीं बनाते हैं। और बने बनाये संबन्ध भी, लाभ कम होने पर, शिथिल होते जाते हैं। लोगों के मन में स्वार्थ भरा हुआ है। परिणाम-स्वरूप आज सारी मानवता पीडित है।
इन दिनों अगर परिवार में तीन सदस्य हैं तो लगता है वे तीनों अलग-अलग द्वीपों में रह रहे हैं। संसार का इतना पतन हो चुका है कि लोग नहीं जानते, सच्ची सद्भावना, समन्वय और शांति क्या है। इसे बदलना ही होगा। स्वहित के स्थान पर, परहित को लाना होगा। संबंधों के नाम पर की जा रही सौदेबाजी, बंद करनी होगी। प्रेम के बंधन को बेडी मत बनने दो, प्रेम को जीवन के प्राण होने चाहिए – यही अम्मा की अभिलाषा है।
जब एक बार यह दृष्टि विकसित हो जाये कि ‘मैं प्रेम हूँ, प्रेम का साकार रूप हूँ।’ फिर शांति की खोज में भटकना नहीं पडेगा, शांति ही हमें ढूँढती हुई आयेगी। मन के विशालता की उस अवस्था में, सारे संघर्ष एवं द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं, जैसे सूर्य निकलने पर धुंध छट जाती है।
प्रश्न – अम्मा के जीवन का संदेश क्या है?
अम्मा – अम्मा का जीवन ही अम्मा का संदेश है, वह है प्रेम !

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