अपने अभूतपूर्व प्रेम और त्याग से श्री माता अमृतानन्दमयी देवी, जिन्हें प्रेम से ‘अम्मा’ पुकारा जाता है, विश्व के लाखों लोगों की अत्यंत प्रिय पात्र बन गई हैं। जो कोई उनके पास आते हैं, अत्यंत कोमलता पूर्वक गले लगाकर, अम्मा अपना असीम प्यार उनके साथ बाँटती हैं, चाहे वे व्यक्ति कोई भी हों और चाहे किसी भी कारण से उनके पास आये हों। हर एक व्यक्ति को गले लगाने के अपने इस सहज किंतु प्रभावी तरीके से अम्मा अनगिनत लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला रही हैं। पिछले 40 वर्षों में अम्मा संसार के तीन करोड़ से अधिक लोगों को गले लगा चुकी हैं।
दूसरों के उत्थान के प्रति अम्मा के अथक उत्साह ने धर्मार्थ सेवा कार्यों की विशाल शृंखला खडी कर दी है, जिसके माध्यम से लोग निःस्वार्थ सेवा से उपजे शांतिभाव का आनन्द ले पा रहे हैं। अम्मा की शिक्षा है कि आत्मा सब में हैं, चेतन में और जड़ में, चर में और अचर में – सभी वस्तुओं में इस आधारभूत एकात्मता को देखना आध्यात्मिकता का सारतत्त्व तो है ही, सभी दुःखों की निवृत्ति का साधन भी है।
अम्मा की शिक्षाएँ सार्वभौमिक हैं। जब भी उनसे उनका धर्म पूछा जाता है, वे उत्तर देती हैं कि उनका धर्म प्रेम है। वे किसी को धर्म परिवर्तन के लिये नहीं कहतीं, न किसी को ईश्वर में विश्वास करने के लिये कहती हैं। उनका आग्रह इतना ही है कि हम अपने मूल स्वरूप की खोज करें और अपने आप में विश्वास रखें।