अमृत गंगा 22
अमृत गंगा की बाईसवीं कड़ी में, अम्मा बता रही हैं कि सृष्टि की रचना पहले भीतर होती है, फिर बाहर! इसे स्पष्ट करने के लिए, वो उस पेंटर का उदाहरण दे रही हैं जो बाहर पेंटिंग में अभिव्यक्त करने से पहले, उसके विषय में भीतर सोचता है…उस कुम्हार का जो मिट्टी हाथ में ले कर, पहले मन ही मन रूप-आकार की अभिकल्पना कर लेता है। मन शान्त है तो सब ठीक है! हमें भी अपने विचारों पर ध्यान देना चाहिए कि वे उचित हैं या अनुचित। आत्म-परीक्षण की आदत डालने में समय लग सकता है लेकिन इसके अभ्यास से हमारा मन दुःख-मुसीबत आने पर भी संतुलित बना रहेगा।
इस कड़ी में, अम्मा की अमेरिकी यात्रा न्यू-यॉर्क में जारी है। इस कड़ी में अम्मा एक भक्तिपूर्ण भजन भी गा रही हैं, ‘नाचे तू मम मन में…’