अमृत गंगा S2-26 अमृत गँगा सीज़न २ की छब्बीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि साधकों को अपने सद्गुणों और ऊर्जा को इकठ्ठा करके गहरी पड़ी वासनाओं को निकाल फेंकना चाहिए। क्रोध, घृणा, द्वेष, आलस्य, संशय, लोभ, और मद-मात्सर्य.. ये सब आसुरी वृत्तियाँ हैं। इन राक्षसी वृत्तियों और विषय-भोगों में प्रवृत्त लोग असुर कहलाते हैं। […]
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अमृत गंगा S2-22 अमृत गँगा सीज़न २ की बाईसवीं कड़ी में, अम्मा नवरात्रि के विषय में बताते हुए कह रही हैं कि देवी माँ की पूजा की नौ रातें मात्र धार्मिक आचार नहीं। इसे विज्ञान और वैश्विक सत्य का समर्थन भी प्राप्त है। हम न केवल देवी माँ के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं […]
अमृत गंगा 22 अमृत गंगा की बाईसवीं कड़ी में, अम्मा बता रही हैं कि सृष्टि की रचना पहले भीतर होती है, फिर बाहर! इसे स्पष्ट करने के लिए, वो उस पेंटर का उदाहरण दे रही हैं जो बाहर पेंटिंग में अभिव्यक्त करने से पहले, उसके विषय में भीतर सोचता है…उस कुम्हार का जो मिट्टी हाथ […]

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