प्रश्न— यदि किसी व्यक्ति में, आत्मज्ञान पाने के बजाय, सद्‌गुरु की सेवा की भावना प्रबल हो तो क्या सद्‌गुरु उसे अगले जन्मों में भी उपलब्ध होंगे?

अम्मा— यदि यह भावना ऐसे शिष्य की है जिसने सद्‌गुरु को पूर्ण समर्पण कर दिया है, तो सद्‌गुरु निश्चय ही सदा उसके साथ रहेंगे। परंतु शिष्य को एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिये। उसे एक अगरबत्ती की तरह बनना होगा, जो स्वयं जलकर दूसरों को सुगंध देती है। शिष्य का हर श्वास संसार के हित में होना चाहिए और हर कर्म करने में यह भावना होनी चाहिये कि वह सद्‌गुरु की सेवा कर रहा है। जिसने पूर्ण रूप से सद्‌गुरु की शरण ले ली है, उसके अब कोई जन्म शेष नहीं है। और यदि सद्‌गुरु चाहेंगे तो वह पुनः जन्म भी ले सकता है।

 

परन्तु गुरु भी कई प्रकार के होते हैं। जो शास्त्रों के अनुसार निर्देष देते हो – वे ही गुरु हैं। आजकल तो ऐसे लोग भी गुरु कहलाते हैं, जो कोई भी पुस्तक पढ़ लेते हैं और कुछ भी असंगत घोष्णाएँ करते फिरते हैं। परन्तु सद्‌गुरु की बात और है। उन्होंने त्याग और तपस्या से सत्य का ज्ञान पाया है और शास्त्रों में वर्णित परम अवस्था का प्रत्यक्ष अनुभव किया है। बाहरी तौर पर सद्‌गुरु, विशेष रूप से अलग नहीं दिेखेंगे, पर जो लाभ सद्‌गुरु दे सकते हैं वह पांडी गुरु नहीं दे सकते। जो बाहर से बहुत तड़क-भड़क दिखाते हैं, उनके अंदर तो खोखलापन ही होगा। उन पर निर्भर रहकर तुम कुछ भी लाभ नहीं पा सकोगे। पांडी गुरु और सद्‌गुरु में इतना अंतर है, जितना एक दस वाट के बल्ब और एक हज़ार वाट के बल्ब में। एक सद्‌गुरु की उपस्थिति मात्र से, तुम आंतरिक आनंद अनुभव करोगे और तुम्हारी वासनाएँ क्षीण होंगी।

सद्‌गुरु की शिक्षाएँ केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहती – उनके कर्मों में परिलक्षित होती हैं। उनके जीवन में, शास्त्रों के वचन जीवन्त रूप में देखे जा सकते हैं। यदि तुम सद्‌गुरु के जीवन का अध्ययन कर लो, तो शास्त्र अध्ययन की आवश्यकता नहीं रहेगी। सद्‌गुरु अहंभाव से पूर्ण मुक्त होते हैं। उनकी तुलना चॉकलेट या शक्कर से बनी प्रकृति से हो सकती है, जिसका पूरा प्रकार ही मिठास देता है, कोई भाग फ़ेंकने योग्य नहीं होता। सद्‌गुरु केवल संसार के कल्याण के लिये जन्म लेते हैं। वे व्यक्ति नहीं हो, एक आदर्ष के प्रतिनिधि हैं। हमें केवल उनका अनुसरण करने की ज़रूरत है। वे हमारे ज्ञान चक्षु खोलते हैं, अंधकार दूर करते हैं।

सद्‌गुरु हर कहीं है परंतु वह सद्‌गुरु ही है जो हमारे दोष दूर करके हमें ईश्वर तक पहुँचाते हैं। इसीलिये सद्‌गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है। शिष्य के लिये तो सद्‌गुरु परमात्मा से भी अधिक हैं। एक बार सद्‌गुरु मिल गये, तो फिर तुम्हें न आत्मज्ञान के बारे में सोचना है, न पुनर्जन्म की चिंता करनी है। तब तुम्हें केवल सद्‌गुरु के बताये मार्ग का अनुसरण करना है। जैसे एक तालाब, एक बड़ी नदी से जुड़कर सागर से जुड़ जाता है वैसे ही एक बार सद्‌गुरु से जुड़ गये, तो तुम बिल्कुल ठीक जगह पर पहुँच गये। और कार्य सद्‌गुरु करेंगे और तुम्हें लक्ष्य तक पहुँचायेंगे। शिष्य को केवल यही करना है कि वह पूर्ण हृदय से गुरु चरण में समर्पित हो जाये। सद्‌गुरु कभी शिष्य का त्याग नहीं करते।