अर्जुन एवं कृष्ण गाढ़ मित्रों की भाँति साथ-साथ खेलते-कूदते बड़े हुए। उस समय भगवान् गीतोपदेश नहीं देते थे। परन्तु कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन पूर्णतः उद्विग्न हो गया और उसके भीतर का शिष्य जाग उठा, तब अर्जुन ने अपने सारथी-सखा कृष्ण को गुरु रूप में स्वीकार किया। अर्जुन के भीतर शिष्यत्व के […]
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प्रश्न— यदि किसी व्यक्ति में, आत्मज्ञान पाने के बजाय, सद्गुरु की सेवा की भावना प्रबल हो तो क्या सद्गुरु उसे अगले जन्मों में भी उपलब्ध होंगे? अम्मा— यदि यह भावना ऐसे शिष्य की है जिसने सद्गुरु को पूर्ण समर्पण कर दिया है, तो सद्गुरु निश्चय ही सदा उसके साथ रहेंगे। परंतु शिष्य को एक क्षण […]
कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि क्या ईश्वर को आँखों से देखा जा सकता है? वे कहते हैं कि यदि यह संभव नहीं है तो ईश्वर के अस्तित्व पर ही विश्वास नहीं किया जा सकता। मानव सीमित है। वे लोग यह नहीं समझते कि दृष्टि, श्रवणशक्ति, सभी सीमित हैं। उनसे एक प्रश्न पूछना चाहिए कि […]
प्रश्नः यदि ईश्वर सर्वव्यापी हैं तो मंदिरों की क्या आवश्यकता है? अम्माः यह सनातन धर्म की विशेषता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के तल तक जाकर उनका उद्धार करता है। व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्कारों के होते हैं, सभी का एक ही स्तर नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति का उनके संस्कार के अनुरूप ही मार्गदर्शन किया जा सकता […]
इसपर शायद बच्चे पूछें कि प्रभु को पुष्प चढाने की क्या आवश्यकता है। वह केवल परंपरागत आचार नहीं है। उसमें व्यावहारिकता भी है। ईश्वर को फूल चढाने के लिये लोग पौधे लगाते हैं। पौधा लगाना व उसका पालन पोषण उनका व्यवसाय बन गया है। फूल तोडनेवालों को उपजीविका मिलती है। फूल का निर्यात करनेवालों को […]

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