अम्मा के २०१२ नव वर्ष सन्देश के कुछ अंश

“अम्मा की प्रार्थना है कि हमारा व सभी प्राणियों का जीवन सुखमय हो! अम्मा के सब बच्चों में अपने तथा जगत में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिव्य शक्ति का उदय हो! अम्मा प्रार्थना करती हैं कि इस नव-वर्ष में एक नए व्यक्ति तथा नए समाज का जन्म हो!

नव-वर्ष एक शुभ अवसर है जबकि लोग अपनी गत-वर्ष की ग़लतियों को सुधारने तथा आलस्य पर विजय पाने का प्रयत्न करते हैं। एक नए शुभारम्भ के लिए रूचि व उत्साह जागृत होता है। बहुत से लोग नव-वर्ष में नए संकल्प लेते हैं। वे नई आदतें डालने की कोशिश करते हैं,कुछ लोग डायरी लिखना शुरू करते हैं, हाँ वो बात दूसरी है कि छः माह पश्चात उसके पन्ने उलट कर देखें तो 1-२ सप्ताह अथवा अधिकतम ३ माह तक ही लिखा होता है। प्रायः हम लोगों के जीवन में ऐसा ही होता है, हम अच्छी आदतों को बनाये नहीं रख पाते। अनवरत अभ्यास सदा सराहनीय होता है, जैसे कोई व्यक्ति सेना अथवा किसी भी संस्था में बहुत वर्षों तक सेवारत रहे तो वह उस संस्था द्वारा सम्मानित होता है,परन्तु हम इन अच्छे कार्यों अथवा संकल्पों पर डटे नहीं रहते। हम में से बहुत से लोग योगाभ्यास आरम्भ करते हैं, किन्तु दो, तीन दिन में ही छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे बड़े उत्साह-पूर्वक ध्यानाभ्यास करने लगते है, फिर दो-तीन महीनों में ही ऊब कर बंद कर देते हैं।

सत्कर्म करने में हमें देरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि मन प्रतिक्षण परिवर्तनशील है। अच्छा बोलने, अच्छा करने तथा करुणा व धैर्य जैसे सद्गुणों के अभ्यास के लिए प्रयत्न करने के लिए हमें निरंतर सचेत, सावधान रहना होगा। धीरे-धीरे ये सत्कर्म आदत बन जायेंगे और फिर हमारा सहज स्वभाव ही हो जायेंगे जिससे जीवन में सफलता की प्राप्ति स्वाभाविक ही होगी। जीवन रुपी कोरे कागज़ पर अपनी इच्छानुसार कुछ भी लिखने का स्वातंत्र्य मानव-मात्र को प्राप्त है। परमात्मा ने हमें कागज़-कलम तो दिया है परन्तु क्या लिखना है – यह वो नहीं बताते। वो केवल लिखना सिखाते हैं, यदा-कदा संकेत भी कर देते हैं किन्तु क्या लिखना है – इसका निर्णय हम पर छोड़ देते हैं। हमें पूर्ण स्वतंत्र्य है – हम भलाई, प्रेम व सुन्दरता से परिपूर्ण पात्र लिखें अथवा बुराई, घृणा व कुरूपता भरे! परमात्मा हमें भलाई व बुराई, दोनों की जानकारी देंगे। वर्ष 2011 में मानवता को बहुत से संकेत प्राप्त हुए हैं।

प्राकृतिक आपदाओं, सामाजिक मतभेदों तथा आर्थिक संकट ने विश्व भर के बेशुमार लोगों की नींद उड़ाई हुई है। भय तथा चिंता दिन-प्रतिदिन मनुष्य के मन को अधिकाधिक संत्रस्त किये जा रहे हैं। मनुष्य के विवेकहीन कर्मों के कारण प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा गया है। वायु, जल तथा पृथ्वी विषयान्वित हो चुके हैं। वही प्रकृति, जो कभी कामधेनु-रूपिणी थी, अब शुष्क हो गयी है। भूमि की निधि ‘तेल’ का ह्रास होता जा रहा है, खाद्य पदार्थों में कमी आ रही है, पीने का पानी तथा शुद्ध वायु दुर्लभ होते जा रहे हैं। आखिर हमसे गलती कहाँ हुई?

वास्तव में इस समस्या के मूल में हमारी भूल यह है कि हम अपनी आवश्यकताओं तथा विलासिता में भेद करने में असमर्थ हैं।

“यदि हमारी वर्तमान पीढ़ी धर्म की जाग्रति को पुनर्स्थापित करने में समर्थ हो जाये तो गरीबी व भुखमरी किसी दुःस्वप्न की भांति लुप्त ही हो जाएँ।”

नव-वर्ष का आगमन हमें समय के प्रवाह की याद दिलाता है। जैसे किसी फूटे हुए घट में से बूँद-बूँद करके पानी बह जाता है, उसी प्रकार मिनट-मिनट कर के हमारा जीवन व्यतीत होता जाता है। मनुष्य के पास ‘समय’ सबसे बहुमूल्य निधि है। और जो कुछ भी खो जाये, फिर से पाया जा सकता है किन्तु समय नहीं। इस तथ्य को जानते-बूझते हुए, हमें प्रतिक्षण सावधानी-पूर्वक जीवन निर्वाह करना चाहिए। और हाँ, स्मरण रहे कि घड़ी की प्रत्येक ‘टिक’ के साथ-साथ हम मृत्यु के मुख की ओर अग्रसर हैं।

“जगत में जो कुछ भी हम देखते, श्रवण करते हैं, वह अनित्य है। हमारे लिए सर्वाधिष्ठान, नित्य ‘आत्मा’ की खोज अति आवश्यक है, तभी हम जान पाएंगे कि जगत में कोई भी, कुछ भी हमसे भिन्न नहीं है।”

हम रो कर गुजारें अथवा हंस कर, जीवन तो गुज़र ही जायेगा…, तो फिर क्यों न हंस कर गुजारें? हंसी आत्मा का नाद है। किन्तु हम दूसरों के दोषों को देख कर ना हंसें, हम सभी के भीतर गुण-दर्शन करें व सद्विचारों, सद्वचनों तथा सत्कर्मों का आदान-प्रदान करें! और अपनी कमियों, त्रुटियों पर हंसने का प्रयत्न करें!

बहुत से बच्चे अम्मा से पूछते हैं कि क्या 2012 में विश्व का अंत होने वाला है? अम्मा को ऐसा नहीं लगता! हाँ,विश्व के कुछ भागों में कुछेक घटनाएँ हो सकती हैं। हम जल, वायु, प्रकृति, मानव-जाति पर एक दृष्टि डालें तो पाएंगे कि सभी जगह उथल-पुथल मची है। इस हलचल की गूँज विश्व में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में सुनाई तो अवश्य देगी। मृत्यु तो जीवन का अवश्यम्भावी अंग है, कभी भी, कहीं भी आ सकती है किन्तु जिस प्रकार विराम देने के पश्चात हम नया वाक्य लिखना आरम्भ करते हैं, ठीक उसी प्रकार एक जीवन का अंत दूसरे जीवन का आरंभ होता है, अतः हमें भय में न जीते हुए अपितु स्वीकृति का दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। सही दृष्टिकोण ऐसा हो कि “चाहे जो हो जाये, मैं ओजपूर्ण, साहसी एवं प्रसन्न रहूँगा”। भय के साये में जीना ऐसा ही है मानो बारूद के ढेर पर बैठना। हम कभी भी चैन से सो नहीं पाएंगे। और फिर अम्मा को कुछ अति गंभीर घटित होता  दिखाई नहीं पड़ता। दुर्घटनाएं तो जगत में सर्वत्र, सर्वदा होती ही रहती हैं। क्या यात्रा के दौरान आज दुर्घटनाएं नहीं होतीं? क्या विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं होते? बाढ़, भूकंप, समुद्री तूफ़ान, सुनामी प्रायः होते रहते हैं। हम जहाँ रहें, प्रसन्न रहें, अपने सत्-स्वरूप में श्रद्धा-विश्वास का विकास करें, सत्कर्म करें!

“कीड़े-मकोड़े जन्मते हैं, वंश-वृद्धि करते हैं फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, पशु भी वैसा ही करते हैं। अब यदि मानव-जाति भी ऐसा ही करे तो उसमे व अन्य जीवों में क्या अंतर रह जायेगा? हम विश्व को क्या सन्देश देंगे? महात्मा अपने निष्काम कर्मों द्वारा अमर हो जाते हैं। भले ही हम उनके बराबर योगदान न दे सकें, जो थोड़ा-बहुत बन पाए वही करें। मरूस्थल में एक भी वृक्ष विकसित हो तो उतने स्थान को तो छायादार बना देगा, एक भी फूल खिले तो कुछ तो सुन्दरता प्रदान करेगा ही। हम जीरो वाट के एक बल्ब की रोशनी में भले न पढ़ पायें किन्तु यदि इसी प्रकार के बल्ब एक बड़ी संख्या में जगमगाने लगें तो अवश्य ही हम भली-भांति देख सकेंगे। उसी प्रकार, एकता द्वारा हम बहुत कुछ पा सकते हैं। विश्व एक झील के समान है, जिसे कोई एक अकेला व्यक्ति शुद्ध नहीं कर सकता किन्तु यदि प्रत्येक व्यक्ति अपना अपना कार्य करे तो मिल-जुल कर अवश्य हम इसका शुद्धिकरण कर सकते हैं। आओ, हम आलस्य का त्याग करके अपनी सामर्थ्यानुसार यथासंभव करें! इस प्रकार हम लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे! ”

“सभी संकल्पों की भांति, प्रसन्नता भी एक संकल्प है कि चाहे कुछ भी हो जाये, मैं सदा प्रसन्न रहूँगा/रहूँगी। मैं सदा बलवान रहूँगा/रहूँगी, मैं कभी अकेला/अकेली नहीं हूँ, परमात्मा सदा मेरे संग हैं।” मेरे सभी बच्चों में भरपूर आत्म-बाल हो, उत्साह व आत्म-विश्वास हो! मेरे सभी बच्चों पर दिव्य-कृपा की वर्षा होती रहे!”