प्रश्नः हिन्दू धर्म में तैंतीस कोटि देवताओं की आराधना होती है? यथार्थतः क्या ईश्वर एक हैं या अनेक?
अम्माः हिन्दू धर्म में अनेक ईश्वर नहीं हैं। हिन्दू धर्म में केवल एक ही ईश्वर में विश्वास किया जाता है, यही नहीं, हिन्दू धर्म उद्घोषित करता है कि समस्त प्रपंच में ईश्वर से भिन्न कुछ नहीं है और सभी भिन्न नाम-रूप उन्हीं की अभव्यक्ति हैं। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त चैतन्य है। वे नाम-रूप के अतीत हैं। परन्तु भक्त पर अनुग्रह करने के लिये वे कोई भी रूप धारण कर सकते हैं। वे मनचाहे रूप धारण कर सकते हैं; असंख्य भाव अपना सकते हैं। वायु मंद बयार की तरह बह सकती है, आंधी के रूप में फूँकार भर सकती है और चाहे तो तूफान बनकर अपने पथ में आता सभी कुछ उडा ले जा सकता है। तो इस वायु के नियंता कौन सा रूप नहीं धारण कर सकते? उनके वैभव का कौन वर्णन कर सकता है?
ईश्वर सगुण व निर्गुण – दोनो भाव अपना सकते हैं, जैसे वायु निश्चल भी हो सकता है और सशक्त रूप भी धारण कर सकता है; जैसे पानी भाप भी बन सकता है और बरफ भी। इसी आधार पर सर्वेश्वर का – शिव, विष्णु, गणेश, कार्तिक, दुर्गा, सरस्वती, काली, इत्यादि रूपों में आराधना की जाती है। व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न अभिरुचियाँ होती हैं। सभी के संस्कार और उनके पालन-पोषण के माहौल में भेद होता है। हिन्दू धर्म अपने अनुयायियों को अपनी अभिरुचि और अपनी मानसिक रचना व स्तर के अनुसार किसी भी भाव में, किसी भी रूप में ईश्वर की आराधना करने की छूट देता है। हिन्दू धर्म में ईश्वर के विविध भावों की उत्पत्ति इसी स्वतंत्रता के फलस्वरूप है। वे भिन्न ईश्वर नहीं – एक ईश्वर के भिन्न भाव हैं।