भक्तमहिला – अम्मा, पारिवारिक जीवन के जिम्मेदारियों के बीच ध्यान और जप के लिए कैसे फुरसत मिलेगी?

अम्मा – जिन्हें सचमुच इच्छा हो उनके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। हार्दिक अभिलाषा होनी चाहिए। सप्ताह में कम से कम एक दिन बच्चें एकान्त मे बैठकर साधना करें। जिम्मेदारियाँ और काम हो सकते हैं, तो भी एक दिन सुरक्षित रखना चाहिए। तबीयत खराब होने पर भारी काम के बावजूद क्या छुट्टी नहीं लेते? यह उससे कितना ही महत्त्वपूर्ण काम है। इसलिए सप्ताह में एक दिन आश्रम के वातावरण में जाकर साधना एवं सेवा करनी चाहिए। यह दिन परिवार में परस्पर प्यार करते, सहयोग देते जीने की तैयारी का है।

संतान शरारत करें तो बच्चों को प्रेम से बातें बताकर समझाना चाहिए। जवानी जीवन की बुनियाद का समय है। उचित रूप से उन पर ध्यान न दें, प्यार न दें, तो वे सही रास्ते से भटक जाएँगे। कोमल पौधे को पानी सींचने की तरह माता-पिता को किशोर हृदयों में प्रेम बाँटने का ध्यान रखना चाहिए। अगर संतान बालिग हो जाएँ और रोटी कमाने लगें तो परिवार का दायित्व उन्हें सौंपकर आश्रम के वातावरण में आकर रहें। एकान्त में बैठकर साधना करनी चाहिए। मन में ईश्वर को प्रतिष्ठित करें। सेवा करके मन को स्वच्छ बनाना चाहिए। इसकी जगह मरते दम तक घर और बाल-बच्चों से लिपटे रहना समझदारी की बात नहीं है। बच्चा बालिग हो गया और नौकरी करने लगा तो आगे की चिन्ता अपने पोते-पोतियों को देखने की होती है। इस दुनिया में क्या सारे जीव बडे नहीं होते? वे किसी की मदद की उम्मीद में बडे नहीं होते। सब अपने-आप चलेगा। संतानों को ईश्वर को सौंप देना, बस्। स्नेहपूर्ण माता-पिता को यही करना चाहिए। वही सच्चा प्रेम है।

अभी तक हम जो कर्म करते थे, वह अपने लिए और अपने बच्चों के लिए करते थे। ऐसी स्थिति में मामूली जानवरों से हम बिलकुल भिन्न नहीं होते। हमें जो श्रेष्ठ मानव-जन्म प्राप्त हुआ उससे क्या लाभ हुआ? अतःएव आगे हमारे सभी कर्म ‘तुम्हारे लिए’ हों। तब ‘अहं’ सहज ही दूर होगा। उसके साथ दुःख और कठिनाइयाँ दूर हो जाएँगी।

रेलगाडी में चढने के बाद बोझा हाथ में लिए हुए भारी वजन पर रोने की जरूरत नहीं है। हम बोझा नीचे उतार सकते हैं। उसी तरह बच्चे भगवान की पूर्ण शरणागति स्वीकार कर उस तत्त्व की ओर बढने का प्रयत्न करें।

यदि सप्ताह में एक दिन कठिन लगे तो बच्चें मास में कम से कम दो दिन आश्रम के वातावरण में जप, ध्यान एवं सेवा में लीन रहें। जीवन की ठोस बुनियाद ईश्वर भजन है। क्रमशः केंचुली उतारतें साँप की तरह सारे बंधनों से छूटते हुए भगवान के चरणों में लीन हो सकते हैं। बच्चे हमेशा पाबन्दी से आगे बढें। कुछ लोग शायद बताएँ कि सब कुछ ब्रह्म है। सब कुछ ब्रह्म है किन्तु हम उस स्तर तक नहीं पहुँचे हैं। ईश्वर किसी में भूल नहीं देख सकते। वे सब में भलाई ही देख पाते हैं। वह स्थिति बन जाए तो यह कथन सार्थक है कि ‘सब-कुछ ब्रह्म है।’ हजार भूलों के होने के बावजूद एक सही बात हो, तो ईश्वर उसी को देखते हैं।