बच्चो, ऐसा नहीं लगता कि विश्व में आज जहाँ देखो, वहीं समस्याएं हैं? भारत के नगरों में बम्ब फटने का, आतंकवादी हमलों का भय है। अम्मा को ज्ञात है कि हम सब इनके तथा अन्य खतरों के विषय में चिंतित हैं। विश्व-भर की समस्याओं का एकमात्र उत्तर है – करुणा।

सब धर्मों का मूलभूत सिद्धान्त दूसरों के प्रति करुणापूर्ण व्यवहार है। धर्मगुरुओं को अपने जीवन में इसका आचरण कर, दूसरों के लिए आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। आज विश्व में ऐसे अनुकरणीय व्यक्तियों का विशेष अभाव है। धर्मगुरुओं को इस अभाव की पूर्ति करने का साहस कर दिखाना चाहिए।

उन्हें विश्व-एकता तथा प्रेम के गीत को गाने की पहल करनी चाहिए, विश्व हेतु दर्पण-सदृश बनना चाहिए। दर्पण को साफ़ उसकी सफ़ाई के लिए नहीं किया जाता अपितु उन लोगों के लिए किया जाता है जो उसमें अपना मुख देखते हैं ताकि वे अपने मुखमंडल को बेहतर साफ़ कर सकें। धर्म के इन दूतों को अनुकरणीय बनना होगा क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत उदाहरण का सीधा प्रभाव, उनके अनुयायियों के वचनों तथा कर्मों की शुद्धि पर पड़ता है। जब सदाचारी लोग स्वयं आदर्शों का आचरण करते हैं, तभी उनके अनुयायी भी उसी उत्साह से श्रेष्ठ-आचरण हेतु प्रेरित होते हैं।

एक सीमा तक, प्रत्येक व्यक्ति को अनुकरणीय बनना चाहिए क्योंकि कोई न कोई हमसे अवश्य प्रेरित होता है। अतः हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम उनके लिए अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करें। अनुकरणीय लोगों के उस विश्व में, फिर न युद्ध होंगे और न शस्त्र, वे भूतकाल के एक दुस्वप्न की भाँति हो जायेंगे। हथियार संग्राहलयों के लिए कलाकृति-मात्र हो कर रह जायेंगे-भूतकाल की उन स्मृतियों के रूप में, जब मनुष्य अपने लक्ष्य के पथ से भटक गया था।

हमारी भूल यह है कि हम धर्म की उथली बातों में फंस कर रह गए हैं, इसे हमें सुधारना होगा। आइये, हम मिल-जुल कर धर्म के ह्रदय-प्रेम, ह्रदय की पवित्रता तथा सर्वत्र एकत्व के दर्शन-को स्पर्श करें। आज का युग वो युग है जहाँ सम्पूर्ण विश्व सिमट कर एक छोटा सा गाँव बनता जा रहा है। ऐसे में हमें धार्मिक-सहिष्णुता की ही नहीं अपितु गहन परस्पर-तालमेल की ज़रुरत है। अविश्वास तथा गलतफहमियों को पीछे छोड़ना होगा। आओ, हम प्रतिद्वंद्विता के अंधकारमय युग को अलविदा कहें तथा सृजनात्मक, अंतर्धार्मिक-सहयोग के नए युग का श्रीगणेश करें!

अंतर्धार्मिक-सहयोग को प्रोत्साहन देने के लिए, प्रत्येक धर्म को वहाँ अपने केन्द्रों की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ अन्य धर्मों का गहनतापूर्वक अध्ययन हो रहा हो। इसका उद्देश्य अति विशाल होना चाहिए, न कि स्वार्थपूर्ण।

जिस प्रकार सूर्य को मोमबत्ती के प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती, उसी प्रकार परमात्मा को भी हमसे कोई अपेक्षा नहीं है। गरीबों की सहायता ही हमारी सच्ची प्रार्थना है। करुणा के अभाव में हमारे सब प्रयास व्यर्थ होंगे-मानो हम गंदे बर्तन में दूध उँडेल रहे हों। सब धर्मों को दीन-दुखियों, गरीबों की करुणा से प्रेरित सेवा के महत्व पर बल देना चाहिए।

आओ, हम आनंदमय कल के प्रार्थना व प्रयास करें, जहाँ संघर्ष-विरोध का नामोनिशाँ न हो, जहाँ विभिन्न धर्म मिल-जुल कर सुख-शान्ति तथा प्रेमपूर्वक कार्यरत हों! हमारा जीवन रुपी वृक्ष प्रेम की माटी में दृढ़तापूर्वक स्थिर रहे! सत्कर्म उस वृक्ष के पर्ण हों; करुणापूर्ण शब्द इसके पुष्प हों तथा शान्ति इसका फ़ल। हम एक ही कुटुंब के सदस्यों की भाँति प्रेमसहित फलें, फूलें ताकि हम शान्ति एवं संतोष से अभिभूत विश्व में अपनी एकता का आनंदोत्सव मना सकें।