हम सबमें ज्ञान है किन्तु सजगता नहीं। इसीलिये, हम अपने जन्म-सिद्ध अधिकार की प्राप्ति में असमर्थ हैं। हम सोचते कुछ हैं, कहना कुछ चाहते हैं पर कह देते हैं कुछ और। और अन्ततः जो करते हैं वो उससे बिलकुल हट कर होता है। क्या यह हम सभी के लिये सत्य नहीं? हम सब मानो एक अर्ध-स्वप्नावस्था में हैं! यद्यपि हम बड़े हो गए हैं किन्तु फिर भी सजगता नहीं आई और न ही हम इस सजगता को अपने मन-वचन और कर्म में ला सके हैं।

एक घर में, एक पिता अपने पुत्र को जगाने की कोशिश कर रहा था। “उठो बेटा, स्कूल जाने का समय हो गया। तुम उठ कर तैयार क्यों नहीं होते?”
परिचित सा उत्तर आया, “डैडी, मुझे स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता।”
“क्यों बेटा?”
“ओह डैडी, स्कूल इतना बोरिंग है!”
“अरे यह क्या कह रहे हो?”
“और सब बच्चे मेरा मज़ाक भी उड़ाते हैं। ”
पिता ने कहा, “सच? अच्छा ठीक है, तुम्हें जो तीन बातें कहनी थी मैनें सुनी। अब तुम वो तीन बातें सुनो जो मैं कहता हूँ। ”
बेटे ने कहा,”ठीक है!”
“बेटा, तीन कारणों से तुम्हें आज स्कूल जाना ही चाहिए। पहला – यह तुम्हारा कर्तव्य है। दूसरा, तुम 50 वर्ष के हो गए हो। और तीसरा यह कि तुम उस स्कूल के प्रिंसिपल हो।”

हममें से अधिकांश लोगों की इस आलसी प्रिंसिपल जैसी ही स्थिति है, जो 50 वर्ष का हो कर भी स्कूल नहीं जाना चाहता। हम एक निद्रा की सी स्थिति में रहते हैं। हमें अपने वचन, कर्म की कोई सुध नहीं। हमें भीतरी स्तर पर जागना होगा। आन्तरिक विकास ही सच्चा विकास है। तभी हम ज्ञान के साथ-साथ सजगता को प्राप्त होंगे।

छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं कि धूम्रपान से कैंसर होता है। फिर भी लोग सिगरेट पीते हैं। जब कैंसर उन्हें ‘पीने’ लग जाता है तभी वे सजग होते हैं और छोड़ने की कोशिश करते हैं। तब उन्हें सिगरेट पीने की इच्छा भी हो रही हो तो वे उसकी उपेक्षा करेंगे। क्योंकि अब वे सजग हो गए हैं कि यह जानलेवा हो सकती है। इसीलिए अम्मा कहती हैं कि हम सजगता के अभाव में ही गलतियाँ करते हैं।

एक बार एक चोर एक महात्मा के पास गया, उन्हें प्रणाम किया और फिर बोला, “गुरुजी, मैं चोर हूँ। मैं यह धंधा छोड़ना चाहता हूँ। कृपया आशीर्वाद दीजिये।”

महात्मा ने तुरन्त उत्तर दिया, “यदि तुम चोरी छोड़ नहीं सकते तो चोरी करने के तुरन्त पश्चात् पीड़ितों के सामने जा कर चोरी कबूलना शुरू कर दो। इससे भी बेहतर होगा कि तुम उन्हें चोरी करने के पूर्व सूचित कर दो।”

अगले दिन चोर एक घर में चोरी करने गया। वो कुछ आभूषण अपने थैले में डालने ही वाला था कि उसे गुरु के शब्द याद आ गए। उसने सोचा, “यदि मैं इन्हें चुराने के बाद इनके स्वामी को बताता हूँ तो वो मुझे पुलिस के हवाले करने में देर नहीं लगाएगा। वे मुझे पीट-पीट कर जेल में डाल देंगे।” ऐसा सोच कर उसने इरादा बदल दिया और घर से बाहर निकल गया। चोरी का लालच आता परन्तु अब वो दण्ड के डर से चोरी कर नहीं पाता था। वह गुरुजी के पास वापस जा कर कहता है कि, “यह कैसा उपदेश दे दिया आपने मुझे? अगर कबूलता रहूँ तो मैं चोरी कैसे करूँ?”

गुरुजी बोले, “मैंने तुम्हें यह सलाह इसीलिये तो दी थी कि तुम चोरी करना बन्द कर दो। मेरे वचन याद करके तुममें सजगता आ गई। तुम्हें अपने कर्मों के परिणाम मालूम होने लगे और तुम अपराध करने से बच गए।”

मेरे बच्चो, तुम्हें भी अपने प्रत्येक कर्म के परिणाम से परिचित होना चाहिए। तब तुम कोई भी गलत काम नहीं करोगे। हम बहुत से गलत कर्म सजगता के अभाव में कर बैठते हैं। अतः, हमें कोई भी कर्म करने के पूर्व, उसके परिणामों के विषय में सोच लेना चाहिए। ईश्वर करे, मेरे बच्चे ऐसा करने में सफ़ल हों!