प्रश्न- क्या ईश्वर ही, हमसे सब कुछ नहीं करा रहे हैं?
अम्मा- हाँ, लेकिन ईश्वर ने हमें बुद्धि भी दी है ताकि हम विवेकपूर्वक कार्य कर सकें। हमें सभी कार्य विचारशीलता से, विवेकपूर्वक करना चाहिये। भगवान ने तो जहर भी बनाया है, पर कोई अकारण ज़हर नहीं खाता तब हम अपने विवेक का उपयोग करते हैं। इसी तरह हमें अपने हर कार्य की जाँच परख विवेकपूर्वक करते रहना जरूरी है।
प्रश्न- अम्मा, जो लोग एक सद्गुरु को समर्पण कर देते हैं, क्या वे मानसिक रूप से कमज़ोर नहीं हैं?
अम्मा- बेटा, एक बटन के दबने से छाता खुल जाता है। इसी तरह एक सद्गुरु के समक्ष सिर झुकाने से तुम्हारा मन, खुलकर विश्वमानस में परिवर्तित हो जाता है। ऐसी आज्ञाकारिता तथा विनम्रता, कमज़ोरी नहीं है। एक पानी के फिल्टर की तरह, सद्गुरु तुम्हारा अहंकार हटाकर तुम्हारा मन निर्मल बना देते हैं। अन्यथा सामान्य लोग तो सदा, अपने अहंकार के गुलाम बने रहते हैं। वे अपनी विवेक बुद्धि का उपयोग नहीं कर पाते।
एक रात एक घर में चोर घुस गया। परन्तु जैसे ही वह घुसा, लोग जाग गये और वह जान बचाकर भागा। लोग उसके पीछे-पीछे चिल्लाते हुए भागने लगे- ‘पकडो चोर, पकडो चोर!’ जैसे ही थोड़ी भीड़ बढ़ी, चोर भी भीड़ में शामिल हो गया और वह भी चिल्लाने लगा- ‘पकडो चोर, पकडो चोर’। उस चोर की तरह, अहंकार भी हमारा साथी बन गया है। ईश्वर हमें अहंकार छोड़ने के अवसर प्रदान करते हैं, परंतु तब भी हम अपने अहंकार का ही पोषण करते हैं और उसे अपना दोस्त बना लेते हैं। शायद ही कभी हम विनम्रता अपनाकर, अहंकार त्यागने की कोशिश करते हैं।
अनु्शासन के बिना, मन तुम्हारे नियंत्रण में नहीं आ सकता। इसलिए तुम्हें सद्गुरु के निर्देश अनुसार, संयमपूर्वक रहना ज़रूरी है। एक बार मन पर काबू पा लेने के पश्चात, तुम्हें किसी का ड़र नहीं रहेगा, क्यों कि तब तुम्हारे अंदर विवेक शक्ति जागृत हो जायेगी जो तुम्हारा प्रदर्शन करेगी।