पत्नी का ऐसा ही सम्बन्ध पति के साथ होना चाहिए। जब पति दफ्तर से घर लौटे तो उसका मुस्कुरा कर स्वागत करे। उस समय जो कुछ कर रही हो उसे छोड कर, चेहरे पर मुस्कान लिए लपक कर दरवाजे पर जाना चाहिए। फिर प्रेम सहित उसके लिए कुछ पेय ले आये व उसके साथ बैठ कर कुछ देर गपशप करें। इस प्रकार थोडी देर हल्का-फुल्का वातावरण बन जाने के बाद ही घर और बच्चों से सम्बंधित समस्यायों की बात छेडे।
इसी प्रकार, मेरे दूसरे बच्चों-पतियों को भी कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहियें। वे घर में आने के बाद दफ्तर जैसा व्यवहार न करें। घर का वातावरण प्रेम तथा स्वतंत्रता-पूर्ण होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आप एक पुलिस-अफसर हैं तो दफ्तर में आप अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ गंभीर रहते होंगे किन्तु उस भाव को घर पर नहीं लाना चाहिए। अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार से पेश न आयें – ”यह लाओ“, ”वो ले जाओ“, ”यह क्यों नहीं किया?“, ”इसे ऐसे क्यों नहीं किया?“ आदि…
घर आने के बाद पत्नी से बातचीत करो, हालचाल पूछो। बच्चों के साथ कुछ समय बिताओ। पत्नी से घर के बारे में बात करो कि क्या चल रहा है या कुछ समस्या तो नहीं है? उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनो। इस प्रकार प्रेमपूर्वक रहो।
पत्नी को कभी भी केवल वासना-पूर्ति के साधन की दृष्टि से न देखो। आज स्त्रियाँ, बहुधा, शिकायत करती हैं क्योंकि हृदय में व्यथा है। उनका कहना है कि पति उनकी समस्यायों की परवाह नहीं करते अतः पत्नियों का जीवन कष्टपूर्ण व्यतीत होता है और अंततः वे अपनी समस्यायों के समाधान के लिए दूसरे पुरुषों का सहारा लेती हैं।
पुरुषों को अपनी पत्नियों के जीवन में उतर कर झांकना चाहिए, उन्हें यूँ ही निर्बल और आश्रित कह कर टाल नहीं देना चाहिए। ऐसा कहना कहाँ तक उचित है कि मुर्गी को मुर्गे जैसा होना चाहिए? स्त्रियों का अपना विशेष स्वभाव होता है। पुरुषों को कुछ समय निकाल कर उनके जीवन की समस्याओं को सुनना व उनके मन के बोझ को जानना चाहिए अन्यथा उनके प्रति बहुत क्रूरता हो जायेगी। प्रायः देखा जाता है कि बहुत से लोग अपनी पत्नियों को जीती जागती मशीन समझते हैं। कितने ही पति शराब के नशे में धुत घर लौटते हैं और प्यार तो दूर की बात, वे पत्नी के साथ झगडा करते हैं। दिन पर दिन पत्नी का जीवन दुःख व कष्टपूर्ण होते-होते असह्य हो जाता है। पति से पूछो तो कहेगा ”मैं उससे प्रेम करता हूं“ किन्तु ज्यों ही दोनों सामने आते हैं, झगडा शुरू हो जाता है। आखिर पत्थरों में छिपे मधु से क्या लाभ?
प्रेम की अभिव्यक्ति होना आवश्यक है। प्रेम परमात्मा है। वही तो हमारा धन है। जिसे हम भोजन व नींद का त्याग करके अर्जित करते हैं, वो सच्चा धन नहीं है, अंत-समय यह हमारे साथ नहीं जायेगा। जिसमें प्रेम का भाव हो, कोई करुणापूर्ण कर्म, मुस्कुराता हुआ चेहरा और मीठे वचन हों – ऐसा व्यक्ति अवश्य ही परमात्मा की कृपा का भागी होगा। प्रेम व त्याग पारिवारिक जीवन के वो दो पंख हैं जो आनंद तथा संतोष के आकाश में उडान भरने में हमारी सहायता करते हैं।
क्रमशः