अम्मा का सन्देश- कोरोना वायरस COVID-19

अम्मा जानती हैं कि मेरे बच्चे कोरोना वायरस से भयभीत हैं। अम्मा अपने सभी बच्चों को ध्यान में रख कर,सबके लिए प्रार्थना कर रही हैं। ऐसे समय में,तुम सबको बहुत ही सावधान और सतर्क रहना होगा। यह समय है,धैर्य,आत्म-संयम और एकता दिखाने का। अम्मा को मालूम है,मेरे सब बच्चे डरे हुए हैं। लेकिन इस वक़्त ज़रूरत डर की नहीं,बल्कि सावधानी और सतर्कता बरतने की है। सबसे मुख्य तो धैर्य है,हिम्मत! हिम्मत होगी,तो तुम किसी भी चीज़ पर विजय पा सकते हो। इसलिए,डरना छोड़ो और धैर्य से काम लो। इस वायरस को मारने वाले,एंटी-वायरस का नाम है धैर्य,जो हमारे मन में पड़ा है। अगर तुम धैर्यलक्ष्मी-धैर्य की देवी-से मित्रता कर लो तो तुम में किसी भी चीज़ का सामना करने की,उस पर विजय पाने की शक्ति आ जाएगी।

मेरे बच्चों को चाहिए कि वे सरकार और कानून-प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा दिए गए सभी दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। साथ ही,ईश्वर-कृपा के लिए,कोमल ह्रदय से किन्तु गंभीरता के साथ प्रार्थना करें। हमारे बुज़ुर्ग कहा करते थे कि,”दवा लो लेकिन साथ-साथ मन्त्र भी जपो।” इस तरह,आज के हालात में भी,हमारे सतत प्रयासों और ईश्वर-कृपा,दोनों की समान आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक को वैसी ही जागरूकता और सावधानी बरतनी चाहिए-जैसी युद्ध के मैदान में तैनात सैनिक बरतता है। मेरे बच्चो,दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना करो और उनके परिवारों के मन की शांति के लिए भी।

तीन साल पहले से,अम्मा को 2020 में,सर पर मंडरा रहे भावी संकट का अनुमान हो रहा था। दो साल पहले,अम्मा ने इस संकट से निपटने के लिए एक ध्यान-पद्धति का अविष्कार किया। इसमें कहा गया है कि भावी को पूरी तरह से टाला तो नहीं जा सकता और इसका थोड़ा-बहुत प्रभाव तो होगा ही। अम्मा,विश्व के लिए लाभकारी,इस ध्यान-पद्धति को विस्तार से समझाती आई हैं और इसका दो वर्षों से अभ्यास किया जा रहा है। इसका नाम है,’विश्व-शान्ति एवं ईश्वर-कृपा हेतु,श्वेत-पुष्प ध्यान-पद्धति।’ अम्मा की सब लोगों से विनती है कि सारे विश्व के कल्याण हेतु,इस ध्यान-पद्धति का,प्रतिदिन एक या दो बार,नियमित रूप से अभ्यास करें।

शान्ति ध्यान-पद्धति
प्रत्येक वस्तु की सत्ता लहरों या तरंगों के रूप में है। पिछली सदी में,फ़्रांस के लोगों ने Concorde नामक एक विमान का अविष्कार किया,जोअत्यन्त तीव्र उड़ान भर सकता है। इसकी आवाज़ इतनी कोलाहल भरी थी कि इसकी Shock-waves से बिल्डिंगों को भारी नुकसान पहुंचा। तो ऐसे ही,गीत की आवाज़ का भी,लहरों या तरंगों के रूप में संचार होता है। हर चीज़ लहरों या तरंगों के रूप में है। क्रोध से उपजी तरंगें,एक माँ के वात्सल्य-भाव से उपजी तरंगों से भिन्न होती हैं और प्रेम व काम-वासना में उठने वाली तरंगें अलग ही होती हैं। कई तरह की तरंगें बनती रहती हैं।


हमारी प्रार्थनायें और सतत प्रयास,संभवतः इस वायरस का प्रतिरोध कर सकती हैं। अतः,संकल्प-गहन भावना-के साथ की गई प्रार्थना का असर ज़रूर होता है। प्रत्येक वस्तु में लय-ताल है जगत की प्रत्येक वस्तु में एक लयताल है-सारी सृष्टि और उसके जीवों के बीच एक ऐसा सम्बन्ध,जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह जगत एक नेटवर्क जैसा है,जहाँ हर चीज़ दूसरी से जुड़ी है। मान लो,किसी जाल के चारों कोनों को चार लोगों ने पकड़ा हो और फिर इसे किसी एक जगह से भी हिलाया जाए तो उसकी तरंगें सब ओर महसूस होंगी। इसी तरह,जाने-अनजाने,हमारे हर कर्म की गूँज सारी सृष्टि में होती है-फिर वो व्यक्तिगत तौर पर किया गया कर्मा हो अथवा सामूहिक। इसीलिये,अम्मा बार-बार कहती हैं कि,”हम कोई अलग-थलग पड़े हुए द्वीप नहीं,बल्कि एक ही श्रृंखला की कड़ियाँ हैं। अतः,अपने से पहले,दूसरों के बदलने की प्रतीक्षा मत करो। कोई बदले न बदले,अपने भीतर परिवर्तन ला कर,तुम बाहर परिवर्तन ला सकते हो।”


मान लो,दसवीं मंज़िल पर रहने वाला कोई व्यक्ति देखे कि अपनी ही बिल्डिंग की सबसे निचली मंज़िल पर आग लगी है और कोई आदमी मदद के लिए चिल्ला रहा है। अगर वो कहे कि,”आग तो सबसे नीचे लगी है,तुम ही जानो;मुझे क्या पड़ी है?” ऐसा सोचना तो बड़ी भारी मूर्खता होगी क्योंकि नीचे लगी आग किसी भी पल,फ़ैल कर ऊपर पहुँच सकती है। इसी प्रकार,आज जो किसी और की समस्या है,कल हमारी हो सकती है।
ठीक ऐसे ही,जब पहली बार यह वायरस चीन में पाया गया तो हम सबने सोचा कि यह तो चीन की समस्या है,हमारी नहीं आख़िरकार,अब यह समस्या हमारी भी नहीं हो गई? प्रश्न इस बात का नहीं है कि उन्होंने इस पर काबू पाया या नहीं बल्कि यह कि हम इससे किस तरह निपटते हैं। हम सावधान रहें,सावधानी और जागरूकता से काम लें तो हम खुद को भी बचा लेंगे और इस महामारी को और फैलने से भी रोक लेंगे।


तो,मेरे बच्चों को क्या करना है?मान लो,हमारी टांग टूट जाये तो हमें कमरे में ही रहना पड़ेगा ना-दो महीने,छह महीने! तब हमें यह बोझिल नहीं लगता क्योंकि मालूम है कि टाँग के ठीक होने के लिए ज़रूरी है। इसी तरह,अब जो अलग रहने,सफ़ाई रखने और अत्यन्त सावधानी बरतने का अभ्यास,आगे चल कर हमें वायरस से प्रतिरोध की क्षमता प्रदान करेगा। जिन लोगों को यह रोग हो ही गया है,उन्हें डरना नहीं चाहिए। बस अपने अलग कमरे में बने रहो और ध्यान रखो कि तुमसे दूसरों को न लग जाये। अपने कमरे में रहो। और जिनको नहीं है,उन्हें अगर कोई लक्षण दिखाई दें तो तुरंत सम्बंधित प्राधिकारी को सूचित करके,उनसे सहायता प्राप्त करें।


इस समय,अमृतपुरी आश्रम में तीन हज़ार पांच सौ लोग रह रहे हैं,जिनमें कई दूसरे देशों के और भारतीय मूल के लोग भी शामिल हैं। आश्रम में,हम सरकार के बनाये नियमों का बखूबी पालन कर रहे हैं और किसी को आश्रम में आने की अनुमति नहीं है। यहाँ रहने वाले लोग भी अगर बाहर जाएँ तो उन्हें कुछ दिन वापस लौटने की मनाही है। ये नियम सरकार के बनाये हुए हैं और हम उनका पालन कर रहे हैं। यहाँ रह रहे 3500 लोगों को भी हमें बचा कर रखना है। इसीलिये,इस नियम की स्थापना की गई है।


ऐसे समय में,अम्मा अपने उन आश्रमवासी बच्चों से मिल रही हैं,जो आश्रम से बाहर नहीं गए। यह वर्ष भर का एकमात्र ऐसा समय है,जब आश्रमवासियों को अम्मा को अपनी सब समस्याएं बताने का मौका मिलता है। अम्मा प्रत्येक व्यक्ति को बुला कर,उसकी साल भर की समस्याएं सुनती हैं। साधारणतः,अम्मा इसके लिए,प्रतिवर्ष पच्चीस दिन अलग रखती हैं। सरकार के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए,अम्मा प्रतिदिन ध्यान और भजन के लिए बाहर आती हैं। शेष समय,आश्रमवासियों की समस्याएं सुनने के लिए रखा गया है।


इस महामारी से निपटने में,भारत सरकार शुरू से ही बहुत सतर्क और सक्रिय रही है। यही कारण है कि हम कम से कम इतनी रोकथाम तो कर पाए हैं। आइये,हम हृदय से प्रार्थना करें और सतर्क एवं सावधान रहें ताकि इसे यहीं रोक कर,आगे और न फैलने-बढ़ने दें। अपनी रक्षा स्वयं करें और बच कर रहें। हम स्वयं ही अपनी राह के अंधियारे हैं,स्वयं ही प्रकाश! हम स्वयं ही अपनी राह के कांटे हैं और स्वयं ही फूल!


मनुष्य के पुरुषार्थ की सदा एक सीमा होती है। हम कितनी भी सावधानी के साथ कार चलाएं,कोई दूसरा असावधान ड्राइवर हमारी कार से आ कर टकरा सकता है। किसी भी कर्म के इच्छित फल में,कृपा की अपनी भूमिका होती है। निस्संदेह,पहले उचित कर्म की आवश्यकता तो है ही। किन्तु सफ़लता की प्राप्ति के लिए,हमें आवश्यकता होती है ईश्वर-कृपा की। और इस कृपा को पाने के लिए प्रार्थना अनिवार्य है।


अब मेरे बच्चों की समझ में आ गया है कि जीवन बस इसी क्षण में,वर्तमान में है। अगली साँस भी हमारे हाथ में नहीं है। हम इस वर्तमान समय का उपयोग कैसे करते हैं,उसी से हमारे सच्चे जीवनकाल का पता लगता है। क्योंकि जीवन तो वही है। अम्मा हमेशा कहती हैं कि मेरे बच्चों को अपने स्वरुप को जानना है। अपने आप को पहचानो और पूरी जागरूकता,उत्साह एवं शान्ति के साथ विश्व-कल्याण हेतु प्रार्थना करो।


ऐसी परिस्थिति में,अपने कमरे में बैठ कर प्रतिदिन थोड़ी देर के लिए ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु- इस मन्त्र का जप करना एक अच्छी साधना है।
ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः।
मेरे सभी बच्चों पर कृपा बनी रहे!