बच्चों, भगवद्गीता वेदों का सार है। गीता का संदेश सम्पूर्ण मानवता के लिए है। जिस समय प्रतिकूल परिस्थितियों में अर्जुन अपना कर्तव्य निश्चित न कर पाने के कारण अवसाद ग्रस्त हो गया था, उस समय श्रीभगवान् ने भगवद्गीता के माध्यम से पूरे विश्व को सन्देश दिया था। इसमें भक्ति, ज्ञान, कर्म, योग और कई तरह की आध्यात्मिक प्रक्रियाएं व आध्यात्मिक सिद्धांत समाहित हैं। भगवान् श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव मानव-मात्र को, चाहे उसका सम्बन्ध किसी भी वर्ण-जाति अथवा संस्कृति से हो, अध्यात्म के शिखर तक उठाने के लिए हुआ था। रेस्टोरेंट में यदि एक ही तरह के व्यंजन परोसे जाएं तो कौन वहां जाना चाहेगा! तरह-तरह के स्वाद ही सब को आकर्षित करते हैं। यदि सभी कपड़े एक ही नाप के हों तो सबको पूरे नहीं आएंगे। अलग-अलग नाप के कपड़ों में से ही सब लोग अपने पहनने लायक कपड़े ले सकेंगे। इसी तरह जीवन में भी, कैसी भी परिस्थिति हो गीता हरेक को आत्मसाक्षात्कार का उत्कृष्ट रास्ता दिखाती है।
भगवान् का कथन इतना समर्थ है कि हरेक व्यक्ति को, वह किसी भी परिस्थिति में हो, उसका हाथ पकड़ कर उठा कर खड़ा कर दे। गुरु और उनका मार्गदर्शन एक दूसरे से भिन्न नहीं होते। इसी तरह भगवान् और गीता में दिया संदेश दो नहीं हैं। गीता धरती पर भगवान् के जीवन की व्याख्या है और भगवान् का जीवन गीता की ही व्याख्या है। भगवान् का जीवन शीतल पवन का वह झौंका है जिसका प्रेमपूर्ण स्पर्श सभी को जागृत करता है। इस तरह गीता अनूठी है। कल्पतरू की तरह सांसारिक जीवन के दुखों से सन्तप्त लोगों को अपनी छाया देती है। वेदों के ज्ञान-सागर को मथ कर भगवान् ने हमें गीता रुपी अमृत प्रदान किया है। अनादि-अनन्त परमात्मा की ही भाँति, भगवद्गीता की कृपा भी समस्त विश्व पर सदैव बनी रहेगी।
भगवद्गीता के पाठ का उद्देश्य स्वयं श्रीकृष्ण बनने से व रामायण का पाठ श्रीराम बनने का है।
– अम्मा, श्री माता अमृतानन्दमयी देवी