ईश्वराधना का प्रथम सोपान है मंदिर में आराधना। ईश्वर की आराधना करने में व उनसे एक व्यक्तिगत संबन्ध स्थापित करने में मंदिर व वहाँ का देवविग्रह – सारूप ईश्वर, सहायक होते हैं। परन्तु हमें क्रमेण सर्वत्र ईश्वर चैतन्य के दर्शन कर पाने की क्षमता को विकसित करना चाहिए। मंदिर में सही भाव से उपासना के […]
अध्यतन वार्ता
- जो देंगे वही पाएंगे
- विनम्रता से भाईचारा और प्रेम बढ़ता है
- अनुशासन से इंद्रियों का सही उपयोग हो सकता है
- गहरी समझ भूझ से ही कर्मों में शुचिता आएगी
- परस्पर भावनाओं का ध्यान रखना सच्ची संस्कृति है
- शिक्षा वो जो सुसंस्कृत करने में सक्षम हो
- सच्चे ज्ञान से वर्तमान में रहना सीख सकते हैं
- सही ज्ञान विनयता लाती है
- माँ शब्द प्रतीक है, परम कारुण्य और वात्सल्य का
- हर चीज के लिए आभार प्रकट करना हमारी संस्कृति है
When Love is there, distance dosen't matter.
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