अमृत गंगा 17 अमृत गंगा की सत्रहवीं कड़ी में, हम देखेंगे कि अन्य साधु-संतों की तरह, अम्मा भी निस्स्वार्थ सेवा को बहुत महत्त्व देती हैं। अम्मा कहती हैं कि यदि हम पूरे मनोयोग के साथ निस्स्वार्थ सेवा और साधना में लग जाएँ तो हम मन को निश्चित ही शुद्ध बना सकते हैं। परमात्मा पर मनन […]
Category / अमृतगंगा
अमृत गंगा 16 अमृत गंगा की सोलहवीं कड़ी.. यहाँ अम्मा अंध-संत सूरदास के विषय में बता रही हैं जिन्हें सत्य का बोध हुआ और जिन्हें भगवान कृष्ण के दर्शन अपने अन्तर्चक्षुओं से होते थे। अम्मा कहती हैं कि सूरदास जैसे भक्त समस्त जगत को ईश्वर-रूप देखते हैं। उनका अनुभव होता है कि कण-कण में परमात्मा […]
अमृत गंगा 15 अमृत गंगा की पंद्रहवीं कड़ी.. अम्मा हमें नियमित ध्यानाभ्यास और उसमें एकाग्रता की प्राप्ति हेतु प्रयत्न करते रहने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। अम्मा कहती हैं कि ध्यानाभ्यास के कुछ क्षण भी सोने, हीरे-जवाहरात समान अनमोल होते हैं। लेकिन वो हमें चेतावनी भी दे रही हैं कि हम इस सोने और […]
अमृत गंगा 14 अमृत गंगा की चौदहवीं कड़ी में, अम्मा हमें अपने प्रत्येक वचन और कर्म के प्रति सचेत रहने की याद दिला रही हैं। शब्दों में अर्थ निहित होते हैं, अतः गलत शब्द चोट पहुँचाते हैं। हमारे जीवन में दुःख आते हैं, पूर्वकृत कर्मों के फलस्वरूप! हम पूर्वजन्मों से संचित कर्म ले कर आते […]
अमृत गंगा 13 अमृत गंगा की तेरहवीं कड़ी में, अम्मा हमें निठल्ले न बैठने की याद दिला रही हैं। आलस्य हमारी दुर्वासनाओं को बढ़ाती है और व्यायाम की कमी से शरीर में पित्त और कफ़ में भी वृद्धि होती है। कर्म करते रहें तो स्वास्थ्य और उत्साह बने रहते हैं। अम्मा कहती हैं कि भले […]

Download Amma App and stay connected to Amma