ईश्वराधना का प्रथम सोपान है मंदिर में आराधना। ईश्वर की आराधना करने में व उनसे एक व्यक्तिगत संबन्ध स्थापित करने में मंदिर व वहाँ का देवविग्रह – सारूप ईश्वर, सहायक होते हैं। परन्तु हमें क्रमेण सर्वत्र ईश्वर चैतन्य के दर्शन कर पाने की क्षमता को विकसित करना चाहिए। मंदिर में सही भाव से उपासना के […]
अध्यतन वार्ता
- प्रतिक्षण मनन करके आंतरिक ऊर्जा संचय करें
- हर अनुभव पूर्व कर्म का फल है
- प्रिय वस्तु का अर्पण सही समर्पण है
- मोक्ष-प्राप्ति के लक्ष्य को भूले बिना कर्म करें
- अनुभव गुरु है, तदानुसार कर्म करें
- कर्मों का महत्त्व मनोभाव में निहित है
- मन ही अपना मित्र और शत्रु है
- धर्म से ही जग में समरसता है
- धर्म का प्रभाव समूचे प्रपंच में सम होता है
- राम राज्य सर्वोत्तम राज्य का पर्याय है
When Love is there, distance dosen't matter.
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