Category / अमृतगंगा

अमृत गंगा S2-26 अमृत गँगा सीज़न २ की छब्बीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि साधकों को अपने सद्गुणों और ऊर्जा को इकठ्ठा करके गहरी पड़ी वासनाओं को निकाल फेंकना चाहिए। क्रोध, घृणा, द्वेष, आलस्य, संशय, लोभ, और मद-मात्सर्य.. ये सब आसुरी वृत्तियाँ हैं। इन राक्षसी वृत्तियों और विषय-भोगों में प्रवृत्त लोग असुर कहलाते हैं। […]

अमृत गंगा S2-25 अमृत गँगा सीज़न 2 की पच्चीसवीं कड़ी.. अम्मा बता रही हैं कि जगत देवी का ही विस्तार-मात्र है। सब संकटों से रक्षा और उनकी आवश्यकताएं पूरी करके, उनका पालन-पोषण करना माँ का धर्म होता है। वो देती है, दिए जाती है! हम प्रकृति से कितना लेते हैं! हमें अपने भीतर केवल आवश्यकतानुसार […]

अमृत गंगा S2-28 अमृत गँगा,सीज़न २ की अट्ठाईसवीं कड़ी में,अम्मा कहती हैं कि अनुशासन की आवश्यकता हमारे अपने हितार्थ है। शरीर और मन को उपयोगी पात्र होना चाहिए। यदा-कदा उपवास करने से शरीर के भीतरी अवयवों की शुद्धि होती है। अंतःकरण की शुद्धि के लिए यम-नियम के पालन की आवश्यकता होगी। इस कड़ी में अम्मा […]

अमृत गंगा S2-24 अमृत गँगा सीज़न २ की चौबीसवीं कड़ी में, अम्मा नवरात्रों को एक पूर्णोत्सव बता रही हैं..भक्ति, व्रत-उपवास, पूजा और समर्पण-भाव का सम्पूर्ण मिश्रण! अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में हमारे प्रवेश को, यह परम-विजय के रूप में दर्शाता है। नवरात्रि के तत्त्व को ग्रहण करके हम परमात्म-बोध को प्राप्त हो […]

अमृत गंगा S2-23 अमृत गँगा सीज़न २ की २३वीं कड़ी में, अम्मा नवरात्रि की चर्चा जारी रखे हैं। ये पावन दिन, हमें अपने मन में छिड़े दैवी और आसुरी शक्तियों के बीच नित्य युद्ध की याद दिलाते हैं। हमारे प्रयत्न विजय के लिए पर्याप्त नहीं हैं। ईश्वर-कृपा भी आवश्यक है। नवरात्र प्रत्येक प्राणी के अंदर […]