कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि क्या ईश्वर को आँखों से देखा जा सकता है? वे कहते हैं कि यदि यह संभव नहीं है तो ईश्वर के अस्तित्व पर ही विश्वास नहीं किया जा सकता। मानव सीमित है। वे लोग यह नहीं समझते कि दृष्टि, श्रवणशक्ति, सभी सीमित हैं। उनसे एक प्रश्न पूछना चाहिए कि बिजली की तार में बिजली को देखा नहीं जा सकता परन्तु इस कारण से यह तो कहा नहीं जा सकता कि बिजली नहीं है। छूने से झटका लगता है। वह अनुभव है।

एक पक्षी आकाश की ऊँचाईयों में उडता जाता है। इतना ऊँचा उडता है की दृष्टि से ओझल हो जाती है। क्या इसपर यह कहा जा सकता है कि चूँकि वह दृष्टिगोचर नहीं है उसका अस्तित्व नहीं है? ऐसा कहना कि मैं तो केवल उसी में विश्वास करूँगा जो मैं देख सकता हूँ, बिल्कुल युक्तिहीन है। मानो किसी व्यक्ति की हत्या हो गई। हजारों लाखों लोगों ने यह हादसा अपनी आँखों से देखा नहीं परन्तु न्यायाधीश को इनके कथन से कुछ लेना देना नहीं है। उनका फैसला तो एक चश्मदीद गवाह के बयान पर निर्भर है। उसी प्रकार जितने ही लोग बोलें कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, पर प्रमाण तो ईश्वरसिद्ध ऋषि-मुनियों के वचनों को ही माना जाएगा।

एक व्यक्ति जो ईश्वर के अस्तित्व को नकारता रहता था एक दिन किसी के घर गया। वहाँ भूगोल के एक छोटे प्रतिरूप को देख कर उसने पूछा, “ओह, कितना सुन्दर है! किसने बनाया है?” यह सुनकर उसके आस्तिक मित्र ने कहा, “यदि कृत्रिम भूगोल बनाने के लिए किसी की आवश्यकता है तो यथार्थ भूमि का भी तो कोई स्रष्टा रहा होगा?”

बीज में ही वृक्ष निहित है पर बीज को देखने से या उसे काट खोलने पर वृक्ष की उपस्थिति का भान नहीं होता। उस बीज को बो दो, सिचाई करो। श्रम करो। तो उसमें से अंकुर फूटेगा, पौधा उगेगा। केवल वाद-विवाद करने से कोई लाभ नहीं है, परिश्रम आवश्यक है। तब अनुभूति होगी। एक भौतिकवादी शास्त्रज्ञ को भी किए जाने वाले परीक्षण में विश्वास होता है। हालाँकि बहुत से परीक्षण असफल भी हो जाते हैं तब भी वे प्रयत्न जारी रखते हैं। उनमें विश्वास होता है कि वे अगले परीक्षण में सफलता पाएँगे। एक डॉक्टर बनने में या इंजिनीयर बनने में कितने वर्ष लग जाते हैं? कोई नहीं कहता कि इतने वर्ष प्रतीक्षा करना उनके लिए संभव नहीं है। इतने साल के निरन्तर प्रयास के फलस्वरूप ही वे डॉक्टर या इंजिनीयर बन पाते हैं। ईश्वर दृष्टिगोचर व्यक्ति नहीं है। वे सब के कारण हैं। यदि कोई पूछे कि आम का पेड या गुठली – इनमें से क्या पहले हुआ तो क्या उत्तर देंगे? आम के पेड के होने के लिए गुठली की आवश्यकता है। गुठली के होने के लिए आम के पेड का होना अनिवार्य है। अतः दोनो के होने के लिए अन्य किसी कारण की आवश्यकता है। वह है ईश्वर! वे सभी के मूल कारण हैं, स्रष्टा हैं। वे सर्वस्व हैं। उन्हें जानने का एकमात्रा उपाय है हममें ईश्वरीय गुणों की वृद्धि; अपने अहंकार को ईश्वर में समर्पित करना। तब हम भी ईश्वरत्व का अनुभव कर पाएँगे। प्रह्लाद सर्वोत्तम भक्ति के उदाहरण हैं। प्रह्लाद की भाँति समर्पित भक्त को पाना कठिन है। यदि हम कोई कार्य करने के लिए उद्यत होते हैं परन्तु हमें उस कार्य में असफलता मिलती है तो हम किसी न किसी को दोष देकर लौट आते हैं। समस्याओं के उठने पर हम विश्वास खो बैठते हैं, ईश्वर को कोसते हैं। पर प्रह्लाद को देखो – उन्हें पानी में डुबो कर मार डालने का श्रम किया गया; उबलते तेल में डाला गया, ऊँचे पहाड पर से नीचे खाई में धकेल दिया गया; आग में फेंक दिया गया। उन्हें मार डालने के अनेक श्रम किए गए परन्तु इन परिस्थितियों में भी प्रह्लाद विचलित नहीं हुए, उनकी भक्ति में अल्प मात्र भी कमी न आई। उस अडिग विश्वास के कारण वे सुरक्षित भी रहे। संकटों का सामना करते हुए भी वे ‘नारायण, नारायण’ जपते रहे। अन्ततः उनकी भक्ति को नष्ट करने के श्रम में उन्हें उल्टा-सीधा पाठ पढाने का श्रम किया गया। उनसे कहा गया, “श्रीहरि चोर है, ईश्वर नहीं। ईश्वर का तो अस्तित्व ही नहीं है।” प्रह्लाद इस सब के बीच सदैव भक्ति से मंत्रजप करते रहे। अब हम अपनी ओर एक नजर डालें – किसी के बारे में कुछ सुनते नहीं कि हमारा उनपर से विश्वास उठ जाता है। जीवन में कोई दुःख आता है तो हमारा विश्वास उठ जाता है। हम सभी की भक्ति पार्ट टाईम (अल्प कालिक) भक्ति है। जब कुछ आवश्यकता होती है तो हम भगवान का स्मरण करते हैं अन्यथा उन्हें याद तक नहीं करते। यदि हमारी इच्छा की पूर्ति न हो तो? तब हमारा विश्वास उठ जाता है। यह है हमारी स्थिति। परन्तु सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी प्रह्लाद अविचलित रहे। प्रत्येक प्रतिसंधि से गुजरते हुए उनका विश्वास दृढ होता गया। संकटों के बढने के अनुसार वे भी भगवद् चरणों को और कसकर पकड लेते। प्रह्लाद में उतना समर्पण था। फलतः वे विश्वभर के लिए प्रकाश प्रसारते दीप बन गए। प्रह्लाद की भक्ति और उनकी कथाएँ आज भी हजारों के हृदयों में प्रकाश प्रसारते हैं।

भक्ति व अद्वैत भाव में प्रह्लाद उत्कृष्ट थे। प्रह्लादसम समर्पण वाला व्यक्ति जो कुछ स्पर्श करता है वह स्वर्ण बन जाता है। प्रह्लाद की भक्ति ही पिता हिरण्यकशिपु की मुक्ति का कारण भी बनी। ईश्वर के करों से मृत्यु प्राप्त करना मुक्ति ही है। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर ने हिरण्यकशिपु को शरीर से तादात्म्य से विलग करके आत्मबोध प्रदान किया। भगवान ने अनुभव के माध्यम से हिरण्यकशिपु में बोध जगाया कि शरीर नश्वर है और केवल आत्मा ही शाश्वत है।

निस्सार मानव अपनी बुद्धि और काबलियत पर गर्व करता ईश्वर को तक दोष देता है। ईश्वरतत्त्व बुद्धि से परे है। ऋषीश्वरों ने ईश्वर को जानने हेतु ही विग्रहाराधना व अन्य आध्यात्मिक साधना का मार्ग दर्शाया है।