अमृत गंगा 30
अमृत गंगा की तीसवीं कड़ी… अम्मा यहाँ बता रही हैं कि मन विचित्र है! हम पुरानी चीज़ों से ऊब कर, नई खोजते रहते हैं। यहाँ तक कि अपने सम्बन्धों से भी ऊब जाते हैं। बस…नहीं ऊबते तो अपने विचारों से! कई लोगों को तो अपने बचपन की फ़िज़ूल की चीज़ें तक याद रहती हैं। दूसरों ने उनसे क्या कहा,उनके साथ क्या किया..वे इससे आगे बढ़ ही नहीं पाते। लेकिन ऐसा कोई नहीं, जिससे कभी कोई गलती न हुई हो। अम्मा कहती हैं, हम सब से गलतियां होती हैं, इसलिए हमें भुलाना और क्षमा करना आना चाहिए।
इस कड़ी में, अम्मा की मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया की यात्रा जारी है। अम्मा भजन भी गा रही हैं..मुरली मनोहर माधवा…

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