अमृत गंगा 18
अमृत गंगा की अठारहवीं कड़ी में, अम्मा हमें बता रही हैं कि जब चीज़ें हमारे मन मुताबिक न हों तो इसे अपने पूर्वकर्मों का फल समझना चाहिए; भाग्य को दोष नहीं देना चाहिए। रोने-धोने की बजाय हमें इसे स्वीकार करके, आगे बढ़ जाना चाहिए। अगर कोई फ़िसल कर गिर जाता है तो केवल रोते हुए वहीं बैठे रहने से वो आगे नहीं बढ़ सकेगा। यूँ सोचना चाहिए कि, “शायद मुझे और ज़्यादा सावधान बनाने के लिए यह परिस्थिति आई है।” भाग्य और कुछ नहीं, अपने ही पूर्वकर्मों का फल है। किन्तु हम कर्म के सूक्ष्म पक्षों को समझ नहीं पाते। कर्म का सिद्धान्त देश-काल द्वारा सीमित नहीं है। इसीलिये अम्मा कहती हैं कि भाग्य को दोष न दो, बल्कि प्रत्येक अनुभव को स्वीकार करो। इस कड़ी में अम्मा की अमेरिकी यात्रा सैंटा-फ़े, न्यू-मैक्सिको में जारी है।
इसी कड़ी में, आप अम्मा को एक बंगाली भजन भावपूर्वक गाते सुनेंगे..जपो नाम जपो नाम…

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