अमृत गंगा 17
अमृत गंगा की सत्रहवीं कड़ी में, हम देखेंगे कि अन्य साधु-संतों की तरह, अम्मा भी निस्स्वार्थ सेवा को बहुत महत्त्व देती हैं। अम्मा कहती हैं कि यदि हम पूरे मनोयोग के साथ निस्स्वार्थ सेवा और साधना में लग जाएँ तो हम मन को निश्चित ही शुद्ध बना सकते हैं। परमात्मा पर मनन शुद्ध हृदय द्वारा ही हो सकता है! अम्मा यह भी कहती हैं कि हमें अपनी योजनाओं में खोये न रह कर, खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। यदि लक्ष्य स्पष्ट हों तो हम अनासक्त हो कर आगे बढ़ सकते हैं।
इस कड़ी में, अम्मा हमें अपनी अमेरिकी यात्रा में, सैंटा-फ़े, न्यू-मैक्सिको लिए चल रही हैं और मुकुन्द मुरारे गोपाला.. यह भजन गा रही हैं।

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