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अमृत गंगा S2-34 अमृत गँगा सीज़न २ की चौंतीसवीं कड़ी में,अम्मा कह रही हैं कि ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं जो एक को दंड दे और दूसरे को क्षमादान! साथ ही,इसका यह अभिप्राय भी नहीं कि हम मनमाना जीवन जियें!कि मैं जैसे चाहूँ,जिऊंगा!” यही मनोभाव सब मुसीबतों की जड़ है। इस मनोभाव से न तो ‘हमें’ […]

अमृत गंगा S2-25 अमृत गँगा सीज़न 2 की पच्चीसवीं कड़ी.. अम्मा बता रही हैं कि जगत देवी का ही विस्तार-मात्र है। सब संकटों से रक्षा और उनकी आवश्यकताएं पूरी करके, उनका पालन-पोषण करना माँ का धर्म होता है। वो देती है, दिए जाती है! हम प्रकृति से कितना लेते हैं! हमें अपने भीतर केवल आवश्यकतानुसार […]

अमृत गंगा S2-19 अमृत गँगा, सीज़न २ की उन्नीसवीं कड़ी में, अम्मा ने कहा कि समाज में सच्ची प्रगति तभी होती है जब हम दूसरों के साथ बाँटते हैं। हमारे पूर्वज समग्र दूरदृष्टि के स्वामी थे। उनके निर्णय एक व्यक्ति के नहीं बल्कि समाज के हित में होते थे। आज के समाज में हम ऐसा […]