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अमृत गंगा S2-47 अमृत गँगा,सीज़न २ की सैंतालीसवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि जीवन एक नदी समान है। इसके तटवर्ती निवासी नदी का केवल एक भाग देख पाते हैं। पर इसका अर्थ यह नहीं कि नदी उतनी ही है, जितनी उन्हें दिखाई देती है। हम इसका न स्रोत देखते हैं, न ही गंतव्य! […]

अमृत गंगा S2-31 अमृत गँगा सीज़न २ की इक्तीसवीं कड़ी में,अम्मा कहती हैं कि कर्म में शुद्धि को सच्ची प्रार्थना कहा जायेगा,अन्यथा यह सच्ची प्रार्थना नहीं। प्रार्थना का आधार हो,आध्यात्मिक तत्त्व का ज्ञान! प्रार्थना तो हम सभी करते हैं लेकिन उसमें गहरे नहीं जाते या यथेष्ट प्रयत्न नहीं करते। अपनी भूलों को सुधारने का प्रयत्न […]

अमृत गंगा S2-13 अमृत गँगा, सीज़न २ की तेरहवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि देश और काल कर्म के सिद्धान्त में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। कर्मफल हमारा पीछा करेंगे ही। अधर्मी लोग भाग कर कहीं भी चले जाएँ, शान्ति नहीं मिलेगी! हम जो बोयेंगे, वही काटना पड़ेगा। इसीलिये अम्मा हमेशा हमें कुछ बोलने […]