हृदय और बुद्धि दो अलग चीज़ें नहीं है। जब तुममे विवेक बुद्धि होगी, तब स्वाभाविक तौर पर तुम अधिक उदार और विशाल हृदय होगे। उस विशालता से निश्छलता, सहयोगिता, विनम्रता और सहभागिता अपने आप पैदा होगी।