‘‘तुम कौन हो?’’ – इस प्रश्न के विभिन्न उत्तर सुनने को मिलते हैं जैसे – ‘मैं हिन्दू हूँ’, ‘मैं ईसाई हूँ’, ‘मैं मुसलमान हूँ’, ‘मैं इंजीनियर हूँ’, ‘मैं डॉक्टर हूँ’…। इन सबमें जो सामान्य है वो है ‘मैं’ जिसका अपना कोई नाम, रूप नहीं है। यह वही परम तत्त्व है जिसे आत्मा, ब्रह्म अथवा परमात्मा […]
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अम्मा को अपने बचपन की कुछ घटनाएं स्मरण हो आयी हैं। अम्मा समुद्र-तट पर रहने वाले एक निर्धन परिवार में जन्मी थीं। अम्मा घर का सारा काम-काज करती थीं। आँगन में झाड़ू लगाते समय, यदि गलती से हमारा पाँव अख़बार के एक टुकड़े पर पड़ जाता तो हम झुक कर उसे छू कर फिर माथे […]
“मैं देह हूँ” – एक असत भावना है। देह को जीवन प्रदान करने वाला है वो चेतन तत्व जो हमारा असली स्वरूप है। उदाहरण के लिए, जब तक पीटर नामक एक व्यक्ति जीवित है तब तक उसे गली में से गुज़रते देख कर लोग कहते हैं, “वो देखो पीटर जा रहा है।” किन्तु जब वे […]
अम्मा के मन में कुछ चल रहा है। प्रकृति एक विशाल बगिया है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे एवं लोग इस बगिया के विविध रंगों के पूर्ण-विकसित फ़ूल हैं। इस फुलवारी का सौन्दर्य तभी पूर्ण होता है जब ये सब एक होकर रहें, प्रेम तथा एकता की तरंगें फैलाएं। ईश्वर करें कि हम सबके मन प्रेम में भीग […]
अम्मा के विदेशी भक्त, युद्ध के कभी न समाप्त होने वाले भीषण आक्रमणों पर, प्रायः अपनी कुण्ठा व्यक्त करते हैं। वे अम्मा से पूछते हैं, “क्या इस पागलपन का कोई अन्त नहीं है?” जगत् के आदि से ले कर संघर्ष चला आ रहा है। यह कहना कि इसे पूर्णतया समाप्त कर देना असंभव है, व्यग्रता […]

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