अमृत गंगा S2-45 अमृत गँगा की पैंतालीसवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि परमात्मा शुभ-मंगल की निधि हैं। जहाँ-जहाँ परमात्म-विचार होगा, वहां-वहां समृद्धि और गुण होंगे ही। प्रत्येक व्यक्ति में प्रबल विवेक और ईश्वरार्पण-बुद्धि नहीं होती। जहाँ कुछ चर-अचर प्राणी ज्ञान की घोर निद्रा में डूबे रहते हैं, वहीं ईश्वर-स्मरण में मस्त व्यक्ति के […]
अध्यतन वार्ता
- प्रतिक्षण मनन करके आंतरिक ऊर्जा संचय करें
- हर अनुभव पूर्व कर्म का फल है
- प्रिय वस्तु का अर्पण सही समर्पण है
- मोक्ष-प्राप्ति के लक्ष्य को भूले बिना कर्म करें
- अनुभव गुरु है, तदानुसार कर्म करें
- कर्मों का महत्त्व मनोभाव में निहित है
- मन ही अपना मित्र और शत्रु है
- धर्म से ही जग में समरसता है
- धर्म का प्रभाव समूचे प्रपंच में सम होता है
- राम राज्य सर्वोत्तम राज्य का पर्याय है
When Love is there, distance dosen't matter.
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