Tag / गृहस्थाश्रम

“बच्चों, हमारे पास कितनी भी संपत्ति हो, यदि हमें परिवार व समाज में इसके स्थान या इसके उचित प्रयोग की जानकारी न हो, तो प्रसन्नता हमसे दूर ही रहती है। असीम संपत्ति से भी प्राप्त सुख अनित्य होता है, नित्य नहीं। कंस और हिरण्यकशिपु क्या अतुल्य संपत्ति के स्वामी नहीं थे? रावण के पास सब […]

यज्ञ का सिद्धांत है कि कोई कहीं भी, किसी भी युग में रहे, सभी लोगों को प्रकृति के नियमानुसार परस्पर प्रेम तथा एकतासहित रहना चाहिए। हम प्रकृति से जितना लेते हैं उसके बदले में उसे कुछ लौटाने की कर्तव्य-भावना से इस पंचमहायज्ञ के चलन का श्रीगणेश हुआ। गृहस्थाश्रमियों के लिए जिन पंचमहायज्ञों का विधान है, […]