अमृत गंगा 14 अमृत गंगा की चौदहवीं कड़ी में, अम्मा हमें अपने प्रत्येक वचन और कर्म के प्रति सचेत रहने की याद दिला रही हैं। शब्दों में अर्थ निहित होते हैं, अतः गलत शब्द चोट पहुँचाते हैं। हमारे जीवन में दुःख आते हैं, पूर्वकृत कर्मों के फलस्वरूप! हम पूर्वजन्मों से संचित कर्म ले कर आते […]
अध्यतन वार्ता
- सुख के सच्चे स्रोत, ‘आत्मा’ को जाने
- आलस्य छोड़ कर्म में निरत रहने से संतृप्ति मिलती है
- सतर्कता ही भक्ति को महान बनाती है
- कुछ भी तुच्छ नही, ऐसा सामाजिक बोध जागृत करें
- श्रद्धा पूर्ण वर्तमान कर्मों से भविष्य शांतिदायक होगा
- संकट को कर्मफल मानकर ईश्वर पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए
- दुख के स्वीकार से दुख अशक्त होता है
- यथास्थिति स्वीकृति भाव जीवन में शांति और तृप्ति लाती है
- हर समस्या हमारे शक्ति के जागरण का माध्यम है
- झुकने और देने का मनोभाव अहंकार का नाश करता है
When Love is there, distance dosen't matter.
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