Category / अमृतगंगा

अमृत गंगा S2-32 अमृत गँगा सीज़न २ की बत्तीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि प्रतिक्षण अनमोल है। प्रतिपल हम मृत्यु की ओर अग्रसर हैं! जो यह जानता है, वो सावधान रहेगा। हृदय और मन को युगपत कर्म करना चाहिए। मन में और अधिक विशालता और सूक्ष्मता आये! अध्यात्म-चिंतन व साधना महत्त्वपूर्ण हैं। ईश्वर हमसे […]

अमृत गंगा S2-31 अमृत गँगा सीज़न २ की इक्तीसवीं कड़ी में,अम्मा कहती हैं कि कर्म में शुद्धि को सच्ची प्रार्थना कहा जायेगा,अन्यथा यह सच्ची प्रार्थना नहीं। प्रार्थना का आधार हो,आध्यात्मिक तत्त्व का ज्ञान! प्रार्थना तो हम सभी करते हैं लेकिन उसमें गहरे नहीं जाते या यथेष्ट प्रयत्न नहीं करते। अपनी भूलों को सुधारने का प्रयत्न […]

अमृत गंगा S2-30 अमृत गँगा सीज़न २ की तीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि हमें बेहतर भविष्य के निर्माण के प्रति दृढ़ संकल्प लेना चाहिए। जीवन आकस्मिक, अप्रत्याशित घटनाओं की शृंखला का नाम है। हमें अपना ध्यान रुकावटों से हटा कर लक्ष्य की ओर केंद्रित करना चाहिए। हम पीछे मुड़-मुड़ कर देखते रहे तो […]

अमृत गंगा S2-27 अमृत गँगा सीज़न २ की सत्ताईसवीं कड़ी में अम्मा कहती हैं कि आजकल लोगों का भाव है कि, “मुझे जो चाहिए, वो चाहिए ही। मुझे दूसरों से क्या लेना-देना?” इसी तरह गृहस्थ जीवन में भी पति पत्नी से प्रेम की याचना करता है और पत्नी पति से। सब प्रेम पाना चाहते हैं। […]

अमृत गंगा S2-29 अमृत गँगा सीज़न २ की उनतीसवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि ज्ञान की पूर्णता अनुभव में है। तब ज्ञान बोध बन जाता है और बोध उस टॉर्च जैसा है जो हमारी अँधेरे में देखने में मदद करता है। हम देखते हैं, आज शरीर है, कल नहीं। इससे हमें शरीर के […]