“बच्चों, हमारे पास कितनी भी संपत्ति हो, यदि हमें परिवार व समाज में इसके स्थान या इसके उचित प्रयोग की जानकारी न हो, तो प्रसन्नता हमसे दूर ही रहती है। असीम संपत्ति से भी प्राप्त सुख अनित्य होता है, नित्य नहीं।
कंस और हिरण्यकशिपु क्या अतुल्य संपत्ति के स्वामी नहीं थे? रावण के पास सब कुछ था परन्तु क्या वह सुखी था? इन्होंने सच्चे धन का मार्ग छोड कर अहंकारपूर्ण जीवन की राह चुनी और फलस्वरूप सुख, शांति उनके जीवन से जाते रहे।

अम्मा ऐसा नहीं कहतीं कि धन-संपत्ति को त्याग दो। यदि हम धन का प्रयोग विवेकपूर्वक करें तो सुख-शांति हमारी सच्ची दौलत होगी। आप भले हर प्रकार की सम्पदा अर्जित कर लें, किन्तु उसके सही उपयोग की कला अध्यात्म ही सिखाता है। हम असंख्य बाण छोडें, किन्तु यदि हमें निशाना लगाना नहीं आता तो सब बाण व्यर्थ चले जायेंगे। अतः पहले निशाना साधना सीखो, फिर बाण चलाओ।
उसी प्रकार, एक बार आध्यात्मिक सिद्धांतों को भली-भाँति समझ लेने के पश्चात आप कितना भी धन क्यों न कमाओ, वह आफ व समाज के लिए हितकारी ही होगा। अतः पहले इन सिद्धांतों, नियमों का ज्ञान प्राप्त करो, तत्पश्चात समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करो।”