अमृत गंगा S2-02
अमृत गंगा सीजन 2 की दूसरी कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि हमें जगत में यूँ रहना चाहिए कि जगत हम में प्रवेश न करने पाए। जगत और इसकी वस्तुएं हमारे दुःख का कारण नहीं बल्कि अपना मन ही दुःख का मूल है। हमें अपनी इच्छाओं,वासनाओं के स्वभाव को समझना चाहिए। वे पूरी हों या न हों,किन्तु परिणाम दुःख ही होता है। मन एक ही इच्छा पर रुकता नहीं, दूसरी भी कतार में प्रतीक्षा कर रही हैं! पूरी न हों तो दुःख प्रतीक्षा कर रहा है! हमें सावधान रहना चाहिए कि मन में अनावश्यक विचारों और इच्छाओं को टिकने न दें।
प्रस्तुत कड़ी में, अम्मा की भारत यात्रा बेंगलुरु से आरम्भ हो रही है। इसी कड़ी में, आप अम्मा को भजन गाते सुनेंगे, ‘वृन्दावन के सुन्दर बाला..’

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