अमृत गंगा 27
अमृत गंगा की सत्ताईसवीं कड़ी में, अम्मा फिर से तनाव और चिंता की बात कर रही हैं। अम्मा कह रही हैं कि चिंता एक चोर जैसी है जो हमारा समय और विश्वास..दोनों चुरा लेती है। चिंता का कोई कारण न भी हो तो हम सोचते हैं कि कुछ बुरा हो जायेगा। पीछे मुड़ कर देखने पर हमें एहसास हो जाता है कि हम यूँ ही चिंता किये जा रहे थे। ऐसी कई चीज़ों की हमने कल्पना की थी, जो कभी नहीं हुईं। कुछ बुरा हो भी जाये तो चिंता से तो किसी समस्या का समाधान नहीं होता। इससे कुछ होने वाला नहीं। इससे देह और मन दोनों कमज़ोर हो जायेंगे। यह उस वायरस जैसी है जो हम उन सबको फ़ैला देते हैं, जिन-जिनके सम्पर्क में आते हैं। हमें अपनी समस्याओं के मूल कारण को ढूंढना होगा। वर्ना, विचार हमें आमरण सतायेंगे।
इस कड़ी में, हम अम्मा की जापान-यात्रा का दर्शन करेंगे और अम्मा के गाये भजन.. हरि नारायण..को सुन कर धन्य होंगे।

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