इसपर शायद बच्चे पूछें कि प्रभु को पुष्प चढाने की क्या आवश्यकता है। वह केवल परंपरागत आचार नहीं है। उसमें व्यावहारिकता भी है। ईश्वर को फूल चढाने के लिये लोग पौधे लगाते हैं। पौधा लगाना व उसका पालन पोषण उनका व्यवसाय बन गया है। फूल तोडनेवालों को उपजीविका मिलती है। फूल का निर्यात करनेवालों को जीविका का साधन मिलता है। आगे फूल बेचनेवालों को रोजी-रोटी मिलती है। फूल चढाने वाले को संतोष होता है। आज खिलकर कल झडनेवाला फूल कितने ही लोगों की कमाई का साधन बन गया। उसे खरीदकर प्रभु के चरणों में चढाने वाले को खुशी मिलती है। हमें हर चीज की व्यावहारिकता देखनी चाहिये। कोई शायद ऐसा सोचे कि कपडे का शाल फूलमाला से बेहतर है। वह भी अच्छा है। परन्तु वह मुर्झाता नहीं है। फूल तो एक ही दिन में मुर्झा जाता है। बार-बार नये फूलों की आवश्यकता पडती है।
हम अपने सबसे प्रिय व्यक्ति की सभी बातों का अनुसरण करते हैं। प्रेयसी कहती है, “अगर मुझसे प्यार है तो सिगरेट पीना छोड दो।” हार्दिक प्रेम करनेवाला हो तो धूम्रपान छोड देगा। वही प्रेम है। उलटे उस के अमल करने पर विचार करने लगे तो वहाँ प्रेम का अभाव है। मैंने कई लोगों को ऐसी बुरी आदतों को छोडते देखा है। “मेरा शराब पीना उसे पसन्द नहीं था, तो छोड दिया।” “मेरे इस फैशन के कपडे पहनना उसे पसन्द नहीं है, तो अब मैं वैसे कपडे नहीं पहनती।” इसपर कोई प्रश्न उठा सकता है कि क्या यह कमजोरी नहीं है? प्यार में वह कतई कमजोरी नहीं है। यदि प्रेम के बीच में तर्क पड गया तो वहाँ प्रेम का आस्वादन नहीं हो सकता। प्रेम में सिर्फ प्रेम होता है। उसमें तर्क की कोई जगह नहीं है।
जो ईश्वर के तत्वों को ग्रहण करते हैं उनमें भी ईश्वरीय गुण विकसित होते हैं। अम्मा ने स्वयं यह यहाँ देखा है। यहाँ के देहाती लोग जब शबरीमला जाते हैं, तब सभी आगतों को खाना खिलाते हैं। सिर पर जब इरुमुडिकेट्टु’ (भाँड) रखते समय सभी बच्चों को कुछ पैसे देते हैं। गरीबों को भरपेट आहार व बच्चों को मिठाई के पैसे देने से हमें भी संतोष मिलता है। हम दूसरों के प्रति जो करुणा प्रकट करते हैं वही ईश्वरकृपा के रूप में हमें वापस मिलती है।
मंदिर में हुंडी में भेंट चढाना भी इस ईश्वर प्रेम का प्रतीक है। वह कतय रिश्वत नहीं है। अपने प्रिय जनों को भेंट देना, हमारे उनके प्रति प्रेम का प्रकटन है। जब प्रेम प्रकट होता है तो वह करुणा का रूप ले लेता है। वह संसार के प्रति करुणा बनता है। जिनके हृदय में दूसरों के प्रति करुणा है उन्हीं पर ईश्वर की कृपा होती है।
इसी तरह जो ईश्वर को दिल से प्रेम करते हैं वे स्वयं बुरी आदतें छोड देते हैं। वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो प्रभु को प्रिय न हो। अगर उनसे गलती हो भी जाये तो वे उसे न दुहराने का ध्यान रखेंगे। बुरी आदतों में व्यय होने वाले पैसों को बचाकर वे उससे गरीबों की सेवा करेंगे। गरीबों के प्रति करुणा ही ईश्वर की यथार्थ पूजा है।
वे दिखावा और ऐशोआराम छोड देंगे और इससे जो पैसे बचते हैं उससे गरीबों की सेवा करेंगे। वे केवल जरूरत के अनुसार ही चीजों का उपयुक्त उपयोग करेंगे। वे अमित धनराशि बटोरने की लालसा को छोड देंगे। औरों की धन-संपत्ति को हडपकर स्ववश करने का ख्याल छोड देंगे। इस तरह समाज में ताल-लय बना रहेगा।
हमें दिमागी कसरत की नहीं वरन् व्यावहारिक समझ की आवश्यकता है। उसी से लोगों को लाभ होगा। बच्चों को झूट बोलने से रोकने के लिये उन्हें बताया जाता है कि झूट बोलोगे तो अंधे हो जाओगे। अगर यह बात सच होती तो आज संसार में सभी अंधे होते। बुद्धि यही दृष्टिकोण अपनायेगी परन्तु जब हम यह बात छोटे बच्चों से कहते हैं तो वे डर के मारे झूट बोलने से कतरायेंगे, झूट नहीं बोलेंगे।
अगर कोई टी.वी. देखने में डूबा हुआ है, उसका मजा ले रहा है और हम उससे कहें कि आओ, हम तुम्हें स्वर्ग लोक ले चलते हैं तो वह तो कहेगा कि अभी मेरे पास समय नहीं है, सीरियल समाप्त होने पर उस पर विचार करूँगा। परन्तु यदि तुम कहो, ‘भागो, अपनी जान बचाओ, तुम्हारे घर में आग लग गई है,’ तो वह तत्क्षण सब कुछ छोड कर उठ भागेगा। उसी प्रकार हमारे पूर्व वचन बच्चों को भलाई के पथ पर ले चलते हैं। यहाँ तर्क या युक्ति पर जोर देने से कोई प्रयोजन नहीं है। वह उक्ति व्यावहारिक है। यद्यपि कई व्यवहार अनाचार जैसे दीखते हैं तो भी ध्यान से हम उनका विश्लेषण करें तो पायेंगे कि उनसे लोगों को कईं प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। हमारा मन संकुचित, विवेकहीन व बचकाना है। ये सब उसे सही रास्ते पर लाने व आगे बढने में मदद देंगे। दूध पीते बच्चे को गोश्त खिलायें तो वह नहीं पचेगा। उस बच्चे को उचित हल्का भोजन खिलाना चाहिये। इसी प्रकार हर व्यक्ति के स्तर पर जाकर उसे बातें समझानी चाहिये। यही कारण है कि सनातन धर्म की कुछ बातें लोगों को अटपटी व विकृत प्रतीत हो सकती हैं। मगर हम उसका विश्लेषण कर देखें तो उन सभी बातों में व्यावहारिकता पायेंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यावहारिकता सनातन धर्म की नींव है।