अमृत गंगा S2-34

अमृत गँगा सीज़न २ की चौंतीसवीं कड़ी में,अम्मा कह रही हैं कि ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं जो एक को दंड दे और दूसरे को क्षमादान! साथ ही,इसका यह अभिप्राय भी नहीं कि हम मनमाना जीवन जियें!कि मैं जैसे चाहूँ,जिऊंगा!” यही मनोभाव सब मुसीबतों की जड़ है। इस मनोभाव से न तो ‘हमें’ सुख-शांति की प्राप्ति होती है और न ही समाज को। राग और द्वेष परस्पर साथी हैं। अपनी इच्छा/अनिच्छा अनुसार जीवन जीना दुर्घटनाओं को जन्म दे सकता है। दूध अच्छा लगता है लेकिन फट जाये तो अच्छा नहीं लगता और हम इसे फेंक देते हैं। लेकिन हम अपनी अंतरात्मा के न्यायालय से बच नहीं सकते।

इस कड़ी में अम्मा की उत्तरी अमेरिकी यात्रा, कैलिफ़ोर्निया के लॉस एंजेलेस में पहुंची है। इसी कड़ी में अम्मा का गाया भजन सुनिये, वृन्दावन कुञ्जविहारी…