अमृत गंगा S2-26
अमृत गँगा सीज़न २ की छब्बीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि साधकों को अपने सद्गुणों और ऊर्जा को इकठ्ठा करके गहरी पड़ी वासनाओं को निकाल फेंकना चाहिए। क्रोध, घृणा, द्वेष, आलस्य, संशय, लोभ, और मद-मात्सर्य.. ये सब आसुरी वृत्तियाँ हैं। इन राक्षसी वृत्तियों और विषय-भोगों में प्रवृत्त लोग असुर कहलाते हैं। अपनी दैवी वृत्तियों द्वारा हम इन आसुरी वृत्तियों पर विजय पा सकते हैं। वात्सल्य, करुणा और सहनशीलता की मूर्ति, ‘शक्ति’ हमें इन आसुरी वृत्तियों पर विजय पाने में सहायता करती है।
इस कड़ी में अम्मा यूरोप-यात्रा को पैरिस, फ़्रांस में जारी रखे हैं। और जो भजन अम्मा इस कड़ी में गा रही हैं,वो है, ‘मुरलीधरा गोपाला मुकुंदा!’

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