अमृत गंगा S2-06
अमृत गँगा सीज़न २ की छठी कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि कहीं चोट लगने पर, संभवतः हम दर्द से रो पड़ें। लेकिन रोने-चिल्लाने से घाव तो भरने वाला नहीं; दवा लगानी होगी। कई लोग बिलकुल प्रयत्न नहीं करते। उपयुक्त कर्म नहीं करते। किन्तु, हम समस्याओं का समाधान प्रयत्न द्वारा ही कर सकते हैं, अतः हमें यथायोग्य प्रयत्न करना चाहिए। अपने कर्त्तव्य-कर्मों के बारे में सोच-सोच कर उदास न हों। हमारे हाथ में है – बस वर्तमान क्षण! वर्तमान क्षण में कर्म करने से, हम में आगे बढ़ने योग्य आत्मविश्वास पैदा होता है।
इस कड़ी में, अम्मा की भारत-यात्रा पुणे-उपमार्ग पर जारी रहेगी। अम्मा इस बार जो भजन गा रही हैं, वो है ..मन रे…

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