अमृत गंगा 20
अमृत गंगा की बीसवीं कड़ी में, अम्मा हमें चेतावनी दे रही हैं कि हमारा मन हमारे विश्वास और सामर्थ्य को अवरुद्ध करता है। मन प्रेम और क्रोध, दोनों को दृढ़तापूर्वक पकड़ कर, संसार से बंध जाता है। हमें वही भाता है, जो मन को भाता है। अगर हमें कोई अच्छा न लगे तो हम उसमें दोष ढूंढने लगते हैं। कोई अच्छा लगे तो उससे हमारा अनुराग हो जाता है। आसक्ति मन का स्वभाव ही है। मन ही हमारे सुख-दुःख का एकमात्र कारण है। यदि हम परमात्मा के शरणागत हो जाएँ तो बिना कहीं बंधे, अटके आगे बढ़ जायेंगे।
इस कड़ी में, अम्मा की US की यात्रा..शिकागो, इलेनॉइस में जारी है। यहाँ अम्मा भावपूर्वक ‘काली दुर्गे नमो नमः’ – यह भजन भी गा रही हैं।

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