Category / अमृतगंगा

अमृत गंगा 29 अमृत गंगा की उनतीसवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि हम उन समस्याओं से चिपके रहते हैं, जिनका अस्तित्व है ही नहीं और फिर शिकायत करते हैं कि हमसे यह बोझ ढोया नहीं जाता। बोझा उठाने से पहले ही हम शिकायत करने लगते हैं कि बड़ा भारी है! चिंता करने की […]

अमृत गंगा 28 अमृत गंगा की प्रस्तुत अट्ठाईसवीं कड़ी में, हम अम्मा के शब्दों में ही अम्मा की, एक महान व्यक्ति की परिभाषा को देखें तो वो कुछ इस तरह है कि जो व्यक्ति अपने विचारों, वचनों और कर्मों के माध्यम से दूसरे कितने लोगों के जीवन पर गहरी और सुन्दर छाप छोड़ पाया है। […]

अमृत गंगा 27 अमृत गंगा की सत्ताईसवीं कड़ी में, अम्मा फिर से तनाव और चिंता की बात कर रही हैं। अम्मा कह रही हैं कि चिंता एक चोर जैसी है जो हमारा समय और विश्वास..दोनों चुरा लेती है। चिंता का कोई कारण न भी हो तो हम सोचते हैं कि कुछ बुरा हो जायेगा। पीछे […]

अमृत गंगा 26 अमृत गंगा की छब्बीसवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि उपदेश पाने के बाद भी, हम उस पर ध्यान नहीं देते। हम नाहक ही मुसीबतें खड़ी करके, उनमें फंस जाते हैं। तनाव और चिंता मुफ़्त मिलते हैं इसलिए हम उन्हें जी भर ले लेते हैं। इसके फलस्वरूप कई बीमारियाँ हो सकती हैं, […]

अमृत गंगा 25 अमृत गंगा की पच्चीसवीं कड़ी में, अम्मा ने कहा कि हालाँकि हम सबको सफ़लता और ख़ुशी की चाह होती है, लेकिन रास्ते में अड़चनें आती रहती हैं। किसी की समस्या निजी-सम्बन्धों को ले कर होती है तो किसी को आर्थिक या स्वास्थ्य-सम्बन्धी! लेकिन एक समस्या जो हम सबके लिए सामान्य है, वो […]