Category / अमृतगंगा

अमृत गंगा S2-07 अमृत गँगा, सीज़न २ की सातवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि हमारे सपने और योजनाएं हमारे युवा अर्थात तरोताज़ा बनाये रखते हैं और हम में आत्मविश्वास पैदा करते हैं। आत्मविश्वास खो कर, हम मानो सब कुछ खो देंगे। हम सपने तो देखें लेकिन बस सपनों में ही न खोये रहें! कर्म […]

अमृत गंगा S2-06 अमृत गँगा सीज़न २ की छठी कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि कहीं चोट लगने पर, संभवतः हम दर्द से रो पड़ें। लेकिन रोने-चिल्लाने से घाव तो भरने वाला नहीं; दवा लगानी होगी। कई लोग बिलकुल प्रयत्न नहीं करते। उपयुक्त कर्म नहीं करते। किन्तु, हम समस्याओं का समाधान प्रयत्न द्वारा ही कर […]

अमृत गंगा S2-05 अमृत गँगा, सीज़न २ की पाँचवीं कड़ी में, अम्मा बता रही हैं कि जगत में रहते-रहते हम वासनाओं का निर्माण कर लेते हैं। लेकिन जब तक वासनाएं हैं, तब तक दुःख भी रहेंगे। जहाँ आग है, वहां धुआँ तो होगा! जब मन का झूला सुख की ओर जा रहा होता है, तब […]

अमृत गंगा S2-04 अमृत गंगा-सीज़न २ की चौथी कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि हम दूसरों पर उंगली उठाने से पहले अपनी ओर देखें। हम अपनी गलतियों को देखें तो माइक्रोस्कोप से, जबकि दूसरों को टेलिस्कोप द्वारा। जब हम किसी से नाराज़ हों तो उसे अपनी ही कमियाँ दिखाने वाले आईने की तरह देखा […]

अमृत गंगा S2-03 अमृत गंगा के सीज़न २ की तीसरी कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि हृदय में प्रेम हो तो सर्वत्र सौन्दर्य ही सौन्दर्य दिखाई देता है। प्रेम के अभाव में, विश्व-सुन्दरी भी हमें कुरूप मालूम हो सकती है। कारण है अपना मन! जो हमें भाता हो, हो सकता है, दूसरे को बिल्कुल […]