Category / अमृतगंगा

अमृत गंगा S2-17 अमृत गँगा सीज़न २ की सत्रहवीं कड़ी में अम्मा कह रही हैं कि हमारा मन ध्वनि-प्रदूषण में फंसा हुआ है और हमें इसे संयमित करने का प्रयत्न करना चाहिए। ऋषि-मुनियों ने निरंतर प्रयत्न द्वारा इसकी प्राप्ति की। उसी प्रकार हमें भी ध्यान आदि जैसी आदतें विकसित करनी चाहियें। जब मन भटके तो […]

अमृत गंगा S2-16 अमृत गँगा सीज़न २ की सोलहवीं कड़ी में अम्मा कहती हैं कि जब हम अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि पहुँचाते हैं तो हमारे यह कर्मों के फल के रूप में वापस हमारे पास आता है और परिणाम होता है बन्धन! लेकिन ज्ञान सहित किये गए कर्म बन्धनकारक नहीं होते। अतः […]

अमृत गंगा S2-15 अमृत गँगा सीज़न २, की पंद्रहवीं कड़ी में अम्मा कहती हैं कि अभी हमारा अपने मन पर संयम नहीं है। मन संसार-चक्र में फंसा है और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति हेतु हमें इससे मुक्त होना होगा। हमें बाह्य और भीतरी अनुशासन और प्रार्थना की आवश्यकता है और मन्त्रों व यज्ञों की भी। ये […]

अमृत गंगा S2-14 अमृत गँगा, सीज़न २ की चौदहवीं कड़ी में, अम्मा कहती हैं कि जागरूकता एक साधना है और यह सब समस्याओं की कुञ्जी है। जागरूकता के आने पर अज्ञान टिक नहीं सकता, अन्धकार जाता रहता है। हमें अपने विचारों, वचनों और कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए। हमारी दृढ़ निष्ठा हो कि एकमेव […]

अमृत गंगा S2-13 अमृत गँगा, सीज़न २ की तेरहवीं कड़ी में, अम्मा कह रही हैं कि देश और काल कर्म के सिद्धान्त में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। कर्मफल हमारा पीछा करेंगे ही। अधर्मी लोग भाग कर कहीं भी चले जाएँ, शान्ति नहीं मिलेगी! हम जो बोयेंगे, वही काटना पड़ेगा। इसीलिये अम्मा हमेशा हमें कुछ बोलने […]