प्रश्न – अम्मा, क्या जीवन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, भौतिक और आध्यात्मिक? इनमें कौन सा भाग हमें सुख देता है?
अम्मा – बच्चों, इन दो भागों को अलग देखने की जरूरत नहीं है। अंतर केवल मानसिक दृष्टिकोण में है। हमें आध्यात्मिकता समझ लेनी चाहिये और उसी के अनुसार जीवन जीना चाहिये, तभी जीवन आनंदमय होगा। आध्यात्मिकता हमें सच्चा सुखी जीवन जीना सिखाती है। मानो जीवन का भौतिक पक्ष – चावल है और आध्यात्मिक पक्ष शक्कर है। आध्यात्मिकता की मिठास खीर को मीठा बनाती है। आध्यात्मिक समझ से जीवन में मधुरता आती है।
यदि तुम केवल जीवन के भौतिक पक्ष को महत्व दोगे तो दुःख ही पाओगे। जो केवल सांसारिक सुखों की कामना करते हैं, उन्हें दुःख भोगने के लिये भी तैयार रहना चाहिये। अतः जो दुःख झेलने के लिये तैयार हों उन्हें ही सांसारिक वस्तुओं के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। सांसारिक पक्ष हमेशा तुम्हें परेशान करेगा व पीड़ा देगा। इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम संसार का पूरी तरह त्याग कर दो। अम्मा केवल यही कह रही है कि संसार में रहते हुए, आध्यात्मिकता की समझ होना आवश्यक है। तब तुम्हें सांसारिक दुःख कमजोर नहीं कर पायेंगे। क्योंकि हमारा अपना होने का दावा करने वाले संबंधी भी वास्तव में हमारे नहीं हैं। हमारा परिवार भी वास्तव में हमारा परिवार नहीं है। केवल भगवान ही हमारे अपने हैं। शेष कोई भी, कभी भी, हमारे विरुद्ध जा सकता है। लोग केवल अपने सुख के लिये हमें प्यार करते हैं। जब दुःख, बीमारी और मुसीबत आती है, तो हमें उसे अकेले ही झेलना पड़ता है। इसलिये केवल भगवान से जुड़े रहो। अगर हम संसार से जुड़ जायेंगे, तो अपनी स्वतंत्रतता फिर से पाना बहुत कठिन हो जायेगा। संसार की आसक्ति से मुक्त होने के लिये एक व्यक्ति को अनगिनत जन्म लेने पड़ते हैं।
जीवन ऐसे जीना चाहिये, जैसे अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हों। तब लोगों के मुँह फेर लेने या विरुद्ध हो जाने पर भी हम उदास नहीं होंगे। हमारी जान से भी प्यारा कोई व्यक्ति तक यदि अचानक हमारे विरुद्ध हो जाये तो भी हम नहीं टूटेंगे, निराश नहीं होंगे।
अगर तुम्हारे हाथ में चोट लगी है, तो बैठकर रोने से वह ठीक नहीं हो जायेगी। धन नष्ट होने पर या संबंधी के वियोग पर भी बैठकर रोने से कुछ नहीं होगा। रोने से कुछ भी वापस नहीं आयेगा। पर अगर हम समझ लें और स्वीकार कर लें कि आज जो हमारे साथ हैं वे कल हमें छोड भी सकते हैं, तो हम किसी के छोड जाने या विरुद्ध हो जाने पर भी अप्रभावित रह सकेंगे। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम किसी को प्यार न करें। हमें सबको प्यार करना चाहिये। परंतु हमारा प्यार निस्वार्थ, निश्छल और बिना किसी अपेक्षा के हो। इस प्रकार हम आसक्ति से पैदा होने वाले दुखों से बच सकते हैं।
सांसारिक जीवन में दुःख है। फिर भी यदि हममें आध्यात्मिक समझ हो तो हम इससे सुख पा सकते हैं। यदि हम प्रशिक्षण पाये बिना तूफानी समुद्र में कूद पडेंगे तो लहरें हमें दबा देंगी और हम डूब भी सकते हैं। पर जिन्हें समुद्र में तैरना आता है उन्हें लहरों से कोई परेशानी नहीं होगी। इसी प्रकार यदि आध्यात्मिकता हमारे जीवन का आधार हो तो हम किसी भी परिस्थिति में आगे बढ़ सकते हैं।
मन का यह स्वभाव है कि वह एक वस्तु को पसंद करता है तो दूसरी से घृणा। कुछ लोगों को लगता है कि वे सिगरेट के बिना जी नहीं सकते, जब कि दूसरों को सिगरेट के धुएँ से भी परेशानी होती है। दुःख और सुख मन की उपज हैं। अगर तुम मन पर नियंत्रण करके, उसे सही मार्ग पर चला दो, तो जीवन में सुख ही सुख रहेगा। इसके लिये आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है। उसके अनुसार जीवन यापन करने पर तुम्हें कभी दुखी नहीं होना पड़ेगा।
हमेशा मंत्र जप करो। केवल ईश्वर चर्चा करो। समस्त स्वार्थ का त्याग करो। सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दो। इन चार सूत्रों का पालन करने पर, हम कभी दुखी नहीं होंगे।
जब हम संसार की किसी भी वस्तु से इतनी आसानी से जुड़ सकते हैं, तो ईश्वर से क्यों नहीं? यदि हमारी ज़ुबान संसार के हर विषय पर चर्चा कर सकती है तो मंत्रजप क्यों नहीं कर सकती? यदि हम ये कर सकें, तो हम व हमारे निकटवर्ती लोग भी सुख शांति का अनुभव करेंगे। अधिकांश लोग अपनी समस्याओं पर, अपने मिलने वालों से विचार विमर्श करते हैं। इससे उनकी कोई समस्या तो हल नहीं होती बल्कि सुनने वाले भी दुखी हो जाते हैं। यह वैसा है जैसे एक छोटा साँप बड़े मेंडक को निगलने की कोशिश कर रहा हो – साँप उसे निगल नहीं पाता और मेंडक बच भी नहीं पाता।
सांसारिक होने का अर्थ है, भगवान को भूल जाना – आत्मकेन्द्रित होकर अपने सुख के अलावा और कुछ न चाहना, सुख के लिये, भौतिक वस्तुओं पर निर्भर रहना और छोटी-छोटी मौज-मस्ती के पीछे जीवन भर दुखी होते रहना। इस तरह के लोग अपनी शांति खो देते हैं और आसपास के लोगों को भी दुखी कर देते हैं। आध्यात्मिक होने का अर्थ है – निस्वार्थ होना और सबकुछ परमेश्वर को समर्पित कर देना, यह जानते हुए कि सब कुछ उसी का है। जो इस प्रकार का जीवन जीते हैं, वे स्वयं आंतरिक शांति अनुभव करते हैं तथा निकतवर्ती लोगों में भी शांति का अहसास जगाते हैं।
हमेशा मंत्र जप करो। केवल ईश्वर चर्चा करो। समस्त स्वार्थ त्याग दो। सब कुछ प्रभु को समर्पित कर दो। इन चार सूत्रों का पालन करने पर, हम कभी दुःखी नहीं होंगे।